Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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[ १२५
१, ५, १९८.] कालाणुगमे कायजोगिकालपरूवणं
वेउब्वियकायजोगीसु मिच्छादिट्टी असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १९६ ॥
कुदो ? सव्वद्धासु वेउनियकायजोगिमिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिविसंताणवोच्छेदाभावा ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ ॥ १९७ ॥
तं जधा- एगो मिच्छादिट्ठी मण-वचिजोगेसु अच्छिदो अद्धाखएण वेउवियकायजोगी जादो । एगसमयं वेउब्धियकायजोगेण दिट्ठो। विदियसमए मदो अण्णजोगं गदो । मरणेण विणा सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्टी वा जादो । अधवा सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी वा वेउब्बियकायजोगद्धाए एगो समओ अत्थि त्ति मिच्छादिट्ठी जादो । विदियसमए अण्णजोगं गदो। वाघादेण एगसमओ णत्थि, णिरुद्धकायजोगादो । एवमसंजदसम्मादिहिस्स वि एगसमयपरूवणा तीहि पयारेहि कायव्या।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १९८ ॥
वैक्रियिककाययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १९६ ॥
क्योंकि, सभी कालोंमें वैक्रियिककाययोगवाले मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंकी परम्पराके विच्छेदका अभाव है।
एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ १९७॥
जैसे-- कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव, मनोयोग अथवा वचनयोगमें विद्यमान था। वह उस योगके कालके क्षय हो जानेसे वैक्रियिककाययोगी हो गया। तब वह एक समय वैक्रियिककाययोगके साथ दृष्टिगोचर हुआ! द्वितीय समयमें मरा और अन्य योगको प्राप्त हो गया । अथवा, मरणके विना सम्यग्मिथ्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि हो गया। अथवा, सासादनसम्यग्दृष्टि या सम्यग्मिथ्यादृष्टि या असंयतसम्यग्दृष्टि कोई जीव, वैक्रियिककाययोगके काल में एक समय अवशेष रहने पर, मिथ्या दृष्टि हो गया और द्वितीय समयमें अन्य योगको प्राप्त हुआ। इस प्रकारसे एक समय लब्ध होता है। यहां पर व्याघातकी अपेक्षा एक समय नहीं पाया जाता है, क्योंकि, काययोगकी अपेक्षा कथन हो रहा है। (व्याघात तो मन या वचनयोगमें पाया जाता है।) इसी प्रकार असंयतसम्यग्दृष्टि जीवके भी एक समयकी प्ररूपणा तीन प्रकारसे करना चाहिए।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १९॥
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