Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, १९३.] कालाणुगमे कायजोगिकालपरूवणं
[१२३ एदं कस्स होदि ? सव्वट्ठसिद्धिविमाणवासियदेवस्स तेत्तीस सागरोवमाणि सुहलालियस्स पमुट्ठदुक्खस्स माणुसगब्भे गृह-मुत्तंत-पित्त-खरिस-वस-सेंभ-लोहि-सुक्कामाट्ठिदे अइदुग्गंधे दूरसे दुव्वण्णे दुप्पासे चमारकुंडोपमे उप्पण्णस्स, तत्थ मंदो जोगो होदि त्ति आइरियपरंपरागदुवदेसा । मंदजोगेण थोवे पोग्गले गेण्हंतस्स ओरालियमिस्सद्धा दीहा होदि त्ति उत्तं होदि । अधवा जोगो एत्थ महल्लो चेव होदु, जोगवसेण बहुआ पोग्गला आगच्छंतु, तो वि एदस्स दीहा अपज्जत्तद्धा होदि, विलिसाए दूसियस्स लहुं पज्जत्तिसमाणणे' असामत्थियादो।
सजोगिकेवली केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहपणेण एगसमयं ॥ १९३ ॥
एसो एगसमओ कस्स होदि ? सत्तट्ठजणाणं दंडादो कवाडं गंतूण तत्थ एगसमयमच्छिय रुजगं गदाणं, रुजगादो कवाडं गंतूण एगसमयमच्छिय दंडं गदकेवलीणं वा ।
शंका-यह उत्कृष्ट काल किस विके होता है ?
समाधान-तेतीस सागरोपमकाल तक सुखसे लालित पालित हुए तथा दुःखोंसे रहित सर्वार्थसिद्धिविमानवासी देवके विष्टा, मूत्र, आंतडी, पित्त, खरिस (कफ) चर्वी, नासिकामल, लोहू शुक्र और आमसे व्याप्त, अति दुर्गन्धित, कुत्सितरस, दुर्वर्ण और दुष्ट स्पर्शवाले चमारके कुंडके सदृश मनुष्यके गर्भ में उत्पन्न हुए जीवके औदारिकमिश्रकाययोगका उत्कृष्ट काल होता है, क्योंकि, उसके विग्रहगतिमें तथा उसके पश्चात् भी मंदयोग होता है, इस प्रकारका आचार्यपरम्परागत उपदेश है। मंदयोगसे अल्प पुद्गलोंको ग्रहण करनेवाले जीवके औदारिकमिश्रकाययोगका काल दीर्घ होता है, यह अर्थ कहा गया है। अथवा, यहां पर चाहे योगकाल बड़ा ही रहा आवे, और योगके वशसे पुद्गल भी बहुतसे आते रहें, तो भी उक्त प्रकारके जीवके अपर्याप्तकाल बड़ा ही होता है, क्योंकि, विलाससे क्षित जीवके शीघ्रतापूर्वक पर्याप्तियोंके सम्पूर्ण करनेमें असामर्थ्य है।
औदारिकमिश्रकाययोगी सयोगिकेवली कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ॥ १९३ ॥
शंका-यह एक समय किसके होता है ?
समाधान-दंडसमुद्धातसे कपाटसमुद्धातको प्राप्त होकर और वहां एक समय रह कर प्रतरसमुद्धातको प्राप्त हुए सात आठ केवलियोंके यह एक समय होता है। अथवा, रुचकसमुद्धातसे कपाटसमुद्धातको प्राप्त होकर और एक समय रह करके दंडसमुद्धातको प्राप्त होनेवाले केवलियोंके यह एक समय होता है।
१ आ पतौ पज्जत्ति समाणो' इति पाठः।
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