Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, २०६.] कालाणुगमे कायजोगिकालपरूवर्ण
[४२९ उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।। २०४॥
तं जधा- एको तिरिक्खो मणुस्सो वा मिच्छादिट्ठी सत्तमपुढविणेरइएसु उववण्णो सवचिरेण अंतोमुहुत्तेण पज्जत्तिं गदो । सम्मादिहिस्स- एक्को बद्धणिरयाउओ सम्मत्तं पडिवज्जिय दंसणमोहणीयं खविय पढमपुढविणेरइएसु उववज्जिय सवचिरेण अंतोमुहुत्तेण पज्जत्तिं गदो। दोण्हं जहण्णकालेहिंतो उक्कस्सकाला दो वि संखेज्जगुणा । कधमेदं णव्वदे? गुरूबदेसादो।
सासणसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २०५॥
तं जधा- सत्तट्ठ जणा बहुआ वा सासणसम्मादिहिगो सगद्धाए एगो समओ अस्थि त्ति देवेसु उपवण्णा । विदियसमर सव्ये मिच्छत्तं' गदा । लद्धो एगसमओ ।
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ २०६॥
एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥२०४ ॥
जैसे-कोई एक तिर्यंच अथवा मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीव सातवीं पृथिवीके नारकियोंमें उत्पन्न हुआ और सबसे बड़े अन्तर्मुहूर्तकालसे पर्याप्तियोंकी पूर्णताको प्राप्त हुआ। अब असंयतसम्यग्दृष्टिकी कालप्ररूपणा करते हैं-कोई एक बद्धनरकायुष्क जीव सम्यक्त्वको प्राप्त होकर दर्शनमोहनीयका क्षपण करके और प्रथम पृथिवीके नारकियों में उत्पन्न होकर सबसे बड़े अन्तर्मुहर्तकालसे पर्याप्तियोंकी पूर्णताको प्राप्त हुआ। दोनोंके जघन्य कालोंसे दोनों ही उत्कृष्ट काल संख्यातगुणे हैं।
शंका-यह कैसे जाना?
समाधान-गुरुके उपदेशसे जाना कि वैक्रियिकमिश्रकाययोगी मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि एक जीव की अपेक्षा बतलाए गए जघन्य कालोंसे उन्हीं के उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्तप्रमाण होते हुए भी संख्यातगुणित हैं।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं । २०५॥
जैसे- सात आठ जन, अथवा बहुतसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव अपने गुणस्थानके काल में एक समय अवशेष रहने पर देवोंमें उत्पन्न हुए और द्वितीय समयमें सबके सब मिथ्यात्वको प्राप्त हुए । इस प्रकार एक समय प्राप्त हो गया।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥ २०६॥ १ प्रतिषु ' सम्वमिच्छत्तं ' इति पाठः ।
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