Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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५३० छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ५, २०७. तं जहा- सत्तट्ठ जणा जावुक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता वा एकवे-तिण्णि समए आदि कादूण जाव उक्कस्सेण समऊण-छ-आवलियाओ सासणद्धा अत्थि त्ति देवेसु उबवण्णा । ते सव्वे कमेण मिच्छतं गदा । तस्समए चेव पुवं व सासणा देवेसुववण्णा । एवं णिरंतरं णाणाजीवे अस्सिदूग सासणद्धा पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता सगरासीदो असंखेज्जगुणा जादा त्ति ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २०७॥
तं जधा- एक्को सासणो सगद्धाए एगसमओ अस्थि त्ति देवेसुववण्णो, विदियसमए मिच्छत्तं गदो । लद्धो एगसमओ ।
उक्कस्सण छ आवलियाओ समऊणाओ ॥ २०८ ॥
तं जधा- एक्को तिरिक्खो मणुस्सो वा उवसमसम्मत्तद्धाए छ आवलियाओ अत्थि ति आसाणं गंतूण एगसमयमच्छिय उजुगदीए देवेसुववज्जिय समऊण-छ-आव. लियाओ आसाणेणच्छिय मिच्छत्तं गदो ।
जैसे-सात आठ जन, अथवा उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र जीव, एक, दो अथवा तीन समयको आदि करके उत्कर्षसे एक समय कम छह आवलीप्रमाण सासादनकालके अवशेष रहने पर वे सबके सब देवोंमें उत्पन्न हुए। पुनः वे सब क्रमसे मिथ्यात्वको प्राप्त हुए। उसी समयमें ही पूर्वके समान अन्य सासादनसम्यग्दृष्टि जीव देवों में उत्पन्न हुए । इस प्रकार निरन्तर नाना जीवोंका आश्रय करके सासादनगुणस्थानका काल पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र और अपनी राशिसे असंख्यातगुणा हो जाता है । - एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ २०७ ॥
जैसे-कोई एक सासादनसम्यग्दृष्टि जीव अपने गुणस्थानके कालमें एक समय अवशिष्ट रहने पर देवोंमें उत्पन्न हुआ और द्वितीय समयमें ही मिथ्यात्वको प्राप्त हो गया। इस प्रकारसे एक समयप्रमाण काल उपलब्ध हो गया।
वैक्रियिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट काल एक समय कम छह आवलीप्रमाण है ॥ २०८॥
_जैसे कोई एक तिर्यंच अथवा मनुष्य उपशमसम्यक्त्वके काल में छह आवलियां अवशिष्ट रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त होकर और एक समय वहां पर रहकर ऋजुगतिसे देवों में उत्पन्न होकर एक समय कम छैह आवलीप्रमाण काल तक सासादनगुण. स्थानके साथ रह कर मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ।
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