Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, १२८.] फोसणाणुगमे मदि-सुद-औषिणाणिफोसणपरूवणे (२८३ सद्दट्ठो । विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउब्धियपरिणदेहि अट्ठ चोद्दसभागा देखणा; मारणतियपरिणदेहि सव्वलोगो फोसिदो । सेसं सुगमं ।
सासणसम्मादिट्ठी ओघं ॥ १२७ ॥
कुदो ? वट्टमाणकाले सगसव्वपदाणं चदुण्हं लोगाणमसखेजदिभागत्तेण, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणत्तेण; तोदे काले सत्थाणस्स तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागत्तेण, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागत्तेण, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणत्तेण; विहारवदिसत्थाणवेदण-कसाय-वेउव्वियपदाणं देसूण-अट्ठ-चोद्दसभागत्तेण मारणंतियस्स देसूण-वारह-चोदसभागत्तेण, ओघसासणसम्मादिट्ठिखेत्तेण सरिसत्तुवलंभादो। कधं सारिच्छे एगत्तं ? ण, दयट्ठियणयणिबंधणववहाराणं सरिसे वि एगत्तालंबणाणमुवलंभा ।।
आभिणिवोहिय-सुद-औधिणाणीसु असंजदसम्मादिटिप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था त्ति ओघं ॥ १२८ ॥ कषाय, और वैक्रियिकपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह (4) भाग स्पर्श किये हैं। मारणान्तिकसमुद्धातपदपरिणत उक्त जीवोंने सर्वलोक स्पर्श किया है । शेष अर्थ सुगम है।
विभंगज्ञानी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १२७॥
विभंगशानी सासादनसम्यग्दृष्टियोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान होनेका कारण यह है कि वर्तमानकालमें स्वकीय सर्वपदोंके स्पर्शनक्षेत्रकी सामान्यलोक आदि चार लोकोंके असं. ख्यातवें भागसे, तथा अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणितक्षेत्रले अतीतकालमें स्वस्थानस्वस्थानपदका सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागसे, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागसे, तथा अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणित क्षेत्रसे, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धात, इन पदोंका कुछ कम आठ बटे चौदह (४) भागसे, और मारणान्तिकसमुद्धातका कुछ कम बारह बटे चौदह (११) भागकी अपेक्षा, ओघप्ररूपित सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानके स्पर्शनक्षेत्रके साथ सदृशता पाई जाती है।
शंका-सादृश्यमात्र होनेपर सूत्रोंमें 'ओघ' पद द्वारा एकत्व कैसे कहा जा
समाधान-नहीं, क्योंकि, द्रव्यार्थिकनयनियन्धनक व्यवहारोंकी सदृशता होनेपर भी एकत्वावलम्बी व्यवहार पाये जाते हैं।
आमिनिबोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानियोंमें असंयतसभ्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछ पस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओधके समान है ॥ १२८॥
१ सासादनसम्यग्दृष्टीना सामान्योक्त स्पर्शनम् । स, सि. १,८. १ आमिनिबोधिकश्रुतावधिमनःपर्ययकेवलज्ञानिना सामान्योक्तं स्पर्शनम् । स. सि. १, ..
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