Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, ५, ५.] कालाणुगमे सासणसम्मादिहिकालपरूवणं उवयारेण पच्चक्खो त्ति लोए बुच्चदे, तहा ओहिणाणविसयमुलंघिय द्विदरासीओ केवलस्स अणंतस्स विसओ त्ति उवयारेण ताओ अणंताओ त्ति वुच्चंति । तम्हा तेसु सुत्ताइरियवक्खाणपसिद्धेण अणंतववहारेण णेदं वक्खाणं विरुज्झदे। अहवा वए संते वि अक्खयो को वि रासी अस्थि, सब्यस्स सपडिवक्खस्सेवुवलंभादो। एसो वि भव्धरासी अणतो, तम्हा संते वि वए अणंतेण वि कालेण ण गिट्ठिस्सइ त्ति सिद्धं ।
सासणसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ ॥५॥
एदस्स सुत्तस्त अवयवत्थो पुवं परूविदो त्ति णेह वुच्चदे, पुणरुत्तमया । एत्थ एगसमयनिरूवणा कीरदे । तं जथा- दो वा तिणि वा एगुत्तरवड्डीए जाव पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता वा उवसमसम्मादिविणो उवसमसम्मत्तद्धाए एगो समओ अत्थि ति सासणत्तं पडिवण्णा एगसमयं विट्ठा । विदियसमये सव्ये वि मिच्छत्तं गदा, तिसु वि लोएसु सासणाणमभावो जादो त्ति लद्धो एगसमओ।
प्रत्यक्ष प्रमाणके द्वारा उपलब्ध है, वह जिस प्रकार उपचारसे 'प्रत्यक्ष है' ऐसा लोकमें कहा जाता है, उसी प्रकारसे अवधिज्ञानके विषयका उल्लंघन करके जो राशियां स्थित हैं, वे सब अनन्त प्रमाणवाले केवलज्ञानके विषय हैं, इसलिए उपचारसे 'अनन्त हैं ' इस प्रकारसे कही जाती हैं। अतएव सूत्र और आचार्योंके व्याख्यानसे प्रसिद्ध अनन्तके व्यवहारसे यह व्याख्यान विरोधको प्राप्त नहीं होता है। अथवा, व्ययके होते रहने पर भी सदा अक्षय रहनेवाली कोई राशि है जो कि क्षय होनेवाली सभी राशियों के प्रतिपक्षके समान पाई जाती है।
इसी प्रकार यह भव्यराशि भी अनन्त है, इसलिए व्ययके होते रहनेपर भी अनन्तकालद्वारा भी यह नहीं समाप्त होगी, यह बात सिद्ध हुई।
सासादनसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय तक होते हैं ॥५॥
इस सूत्रका अवयवार्थ पहले कहा जा चुका है, इसलिए पुनरुक्त दोषके भयसे यहां पर नहीं कहते हैं। अब यहां पर एक समयकी प्ररूपणा की जाती है। वह इस प्रकारसे हैदो अथवा तीन, इस प्रकार एक अधिक वृद्धिसे बढ़ते हुए पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र
शमसम्यग्दा जाव उपशमसम्यक्त्वक कालमें एक समयमात्र काल अवशिष्ट रह जाने पर एक साथ सासादन गुणस्थानको प्रात हुए एक समयमें दिखाई दिये। दूसरे समयमें सबके सब मिथ्यात्वको प्राप्त हो गये । उस समय तीनों ही लोकोंमें सासादनसम्यग्दृष्टियोंका अभाव हो गया। इस प्रकार एक समयप्रमाण सासादनगुणस्थानका नाना जीवोंकी अपेक्षा काल प्राप्त हुआ।
१ सासादनसम्यग्दष्टे नाजीवापेक्षया जघन्थेनैकः समयः । स. सि. १,८.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org