Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, ७६.] कालाणुगमे मणुस्सकालपरूवणं
[ ३७५ उक्कस्सं छ आवलियाओं ॥ ७४ ॥
कुदो ? उवसमसम्मादिहिस्स उवसमसम्मत्तद्धाए छ आवलियाओ अस्थि त्ति सासणं पडिवज्जिय छ आवलियाओ तत्थ गमिय मिच्छत्तं पडिवण्णस्स छ-आवलिओवलंभा ।
सम्मामिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥७५॥
पमत्तसंजद-संजदासंजद-अट्ठावीसमोहसंतकम्मियमिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठिपच्छायदाणं संखेज्जसम्मामिच्छादिट्ठीणं सव्वजहण्णमंतोमुहुत्तमच्छिय विसोहि-संकिलेसवसेण सम्मत्त-मिच्छत्ताणि उवगदाणं सव्वजहण्णंतोमुहुत्तुवलंभा ।
उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ ७६ ॥ सम्मामिच्छादिट्ठीणं सव्वुक्कस्ससम्मामिच्छत्तद्धाणं मिच्छाइट्ठि-असंजदसम्माइट्ठि
उक्त तीनों प्रकारके सासादनसम्यग्दृष्टि मनुष्योंका एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल छह आवलीप्रमाण है ॥ ७४ ॥
क्योंकि, उपशमसम्यग्दृष्टि जीवके उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलियां शेष रहने पर सासादनगुणस्थानको प्राप्त होकर छह आवलीप्रमाण काल वहां पर बिताकर मिथ्यात्वगुणस्थानको प्राप्त होनेवाले जीवके छह आवलीप्रमाण काल पाया जाता है।
उक्त तीनों प्रकारके सम्याग्मथ्यादृष्टि मनुष्य कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त तक होते हैं ॥ ७५ ॥
क्योंकि, प्रमत्तसंयत, अथवा संयतासंयत, अथवा मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाले मिथ्यादृष्टि अथवा असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे पीछे आये हुए संख्यात सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके सर्व जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल रह करके विशुद्धि और संक्लेशके वशसे यथाक्रमसे सम्यक्त्व अथवा मिथ्यात्वको प्राप्त हुए जीवोंके सर्व जघन्य अन्तर्मुहूर्त काल पाया जाता है। ___उक्त तीनों प्रकारके सम्यग्मिथ्यादृष्टि मनुष्योंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ७३ ॥
मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत और प्रमत्तसंयत जीवोंसे संख्यात पारमें
१ उत्कर्षेण षडावलिकाः । स. सि. १, ८. २ सम्यग्मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया एकजीवापेक्षया च जघन्यश्चोत्कृष्टश्चान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ..
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