Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, ११४. ]
कालानुगमे एइंदियकालपरूवणं
ति गाहासुत्तादो | मुहुस्स एवदियभागो संखेज्जावलियमेत्तो त्ति कथं नव्वदे १
आवलिय अणगारे चक्खिदिय - सोद - घाण - जिह्वाए । मण वयण कायफासे अवाय - ईहासुदुस्सा ॥ ३६॥ केवलदंसण- णाणे कसायसुक्क्कए पुधत्ते य । पडिवादुवसातय खवेंतए संपराए य ॥ ३७ ॥ माणद्धा कोधद्धा मायद्धा तह चेव लोभद्धा । खुदभवग्गणं पुण किट्टीकरणं च बोद्धव्वं ॥ ३८ ॥
इस गाथासूत्र से जाना जाता है कि क्षुद्रभवका काल अन्तर्मुहूर्तका छ्यासठ हजार तीन सौ छत्तीसवां भाग है ।
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शंका- मुहूर्तका छ्यासठ हजार तीन सौ छत्तीसवां भाग संख्यात आवलीप्रमाण होता है, यह कैसे जाना ?
समाधान - अनाकार दर्शनोपयोगका जघन्य काल आगे कहे जानेवाले सभी पदोंकी अपेक्षा सबसे कम है । ( तथापि वह संख्यात आवलीप्रमाण है ।) इससे चक्षुरिन्द्रियसम्बन्धी अवग्रद्दज्ञानका जघन्य काल विशेष अधिक है । इससे, श्रोत्रेन्द्रियजनित अवग्रहशान, इससे घ्राणेन्द्रियजनित अवग्रहज्ञान, इससे जिह्वेन्द्रियजनित अवग्रहज्ञान, इससे मनोयोग, इससे वचनयोग, इससे काययोग, इससे स्पर्शनेन्द्रियजनित अवग्रहज्ञान, इससे अवायज्ञान, इससे ईहाज्ञान, इससे श्रुतज्ञान और इससे उच्छ्वास, इन सबका जघन्य काल क्रमशः उत्तरोत्तर विशेष विशेष अधिक है ॥ ३६ ॥
तद्भवस्थ केवलीके केवलज्ञान और केवलदर्शन, तथा सकषाय जीवके शुक्ललेश्या, इन तीनोंका जघन्य काल ( परस्पर सदृश होते हुए भी) उच्छ्रासके जघन्य काल से विशेष अधिक है। इससे एकत्ववितर्कअवीचारशुक्लध्यान, इससे पृथक्त्ववितर्कवीचारशुक्लध्यान, इससे उपशमश्रेणीले गिरनेवाले सूक्ष्मसाम्परायसंयत, इससे उपशमश्रेणीपर चढ़नेवाले सूक्ष्मसाम्परायसंयत, और इससे क्षपकश्रेणीपर चढ़नेवाले सूक्ष्मसाम्परायसंयत, इन सबका जघन्य काल क्रमशः उत्तरोत्तर विशेष विशेष अधिक है ॥ ३७ ॥
क्षपक सूक्ष्मसाम्परायके जघन्य कालसे मानकषाय, इससे क्रोधकषाय, इससे मायाकषाय, इससे लोभकषाय और इससे लब्ध्यपर्याप्त जीवके क्षुद्रभवग्रहणका जघन्य काल क्रमशः उत्तरोत्तर विशेष विशेष अधिक है । क्षुद्रभवग्रहणके जघन्य कालसे कुष्टीकरणका जघन्य काल विशेष अधिक है, ऐसा जानना चाहिए ॥ ३८ ॥
१ कसायपाहुडे अद्धापरिमाणाधिकारे १-३.
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