Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ५, १६३. जोगद्धाए अस्थि त्ति मिच्छत्तं गदो । एगसमयं मणजोगेण सह मिच्छत्तं दिट्ठ । विदियसमए मिच्छादिट्ठी चेव, किंतु वचिजोगी कायजोगी वा जादो । एवं जोगपरावत्तीए पंचविहा एयसमयपरूवणा कदा । कधं समयभेदो ? सासणादिगुणट्ठाणपच्छाकधत्तेण । गुणपरावत्तीए एगसमओ चुच्चदे । तं जहा- एक्को मिच्छादिट्ठी वचिजोगेण कायजोगेण वा अच्छिदो । तस्स वचिजोगद्धासु कायजोगद्धासु खीणासु मणजोगो आगदो। मणजोगेण सह एगसमये मिच्छत्तं दिटुं । विदियसमए वि मणजोगी चेव । किंतु सम्मामिच्छत्तं वा असंजमेण सह सम्मत्तं वा संजमासंजमं वा अपमत्तभावेण संजमं वा पडिवण्णो। एवं गुणपरावत्तीए चउव्विहा एगसमयपरूवणा कदा । कधमेत्थ समयभेदो ? पडिवज्जमाणगुणमेएण । पुव्विल्लपंचसु समएसु संपहिलद्धचदुसमए पक्खित्ते णव भंगा होति (९)। एक्को मिच्छादिट्ठी वचिजोगेण कायजोगेण वा अच्छिदो। तेसिं खएण मणजोगो आगदो। एगसमयं मणजोगेण सह मिच्छत्तं दिटुं । विदियसमए मदो । जदि तिरिक्खेसु वा मणु
.............................
मनोयोगके कालमें एक समय अवशिष्ट रहने पर वह मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। वहां पर एक समयमात्र मनोयोगके साथ मिथ्यात्व दिखाई दिया। द्वितीय समयमें भी वह जीव मिथ्यादृष्टि ही रहा, किन्तु मनोयोगीसे वह वचनयोगी अथवा काययोगी हो गया। इस प्रकार योगपरिवर्तनके साथ पांच प्रकारसे एक समयकी प्ररूपणा की गई।
शंका-यहां पर समयमें भेद कैसे हुआ?
समाधान-सासादनादि गुणस्थानोंको पीछे करनेसे, अर्थात् उनमें पुनः वापिस आनेसे, समय-भेद हो जाता है।
__ अब गुणस्थानपरिवर्तनके द्वारा एक समयकी प्ररूपणा कहते हैं। वह इस प्रकार हैकोई एक मिथ्यादृष्टि जीव वचनयोगसे अथवा काययोगसे विद्यमान था। उसके वचनयोग अथवा काययोगका काल क्षीण होने पर मनोयोग आगया और मनोयोगके साथ एक समयमें मिथ्यात्व दृष्टिगोचर हुआ। पश्चात् द्वितीय समयमें भी वह जीव यद्यपि मनोयोगी ही है, किन्तु सम्यग्मिथ्यात्वको, अथवा असंयमके साथ सम्यक्त्वको, अथवा संयमासंयमको, अथवा अप्रमत्तभावके साथ संयमको प्राप्त हुआ। इस प्रकारसे गुणस्थानके परिवर्तनद्वारा चार प्रकारसे एक समयकी प्ररूपणा की गई।
शंका-यहां पर समय-भेद कैसे हुआ ? समाधान-आगे प्राप्त होनेवाले गुणस्थानके भेदसे समयमें भेद हुआ।
पूर्वोक्त योगपरिवर्तनसम्बन्धी पांच समयों में साम्प्रतिक लब्ध गुणस्थानसम्बन्धी चार समयोंको प्रक्षिप्त करने पर नौ (९) भंग हो जाते हैं। कोई एक मिथ्यादृष्टि जीव बचनयोगसे अथवा काययोगसे विद्यमान था। पुनः योगसम्बन्धी कालके क्षय हो जाने पर उसके मनोयोग आ गया। तब एक समय मनोयोगके साथ मिथ्यात्व दिखाई दिया और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org