Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, १७४.] कालाणुगमे कायजोगिकालपरूवणं
[११५. उक्कस्सेण अंतोमुहत्तं ॥ १७१ ॥
तं जधा-चत्तारि उवसामगा चत्तारि खवगा च अणप्पिदजोगे द्विदा अद्धाक्ख. एण अप्पिदजोगं गदा। तत्थ अंतोमुहुत्तमच्छिय पुणो वि अणप्पिदजोगं पडिवण्णा । लद्धमंतोमुहुत्तं ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १७२॥ एत्थ एगसमयपरूवणा खवगुवसामगाणं दोहि तीहि पयारेहि जाणिय वत्तव्या । उकस्सेण अंतोमुहुत्तं ॥ १७३॥ एत्थ अंतोमुहुत्तपरूवणा जाणिय वत्तव्वा । एत्थ एगसमयवियप्पपरूवण8 गाहा
एक्कारस छ सत्त य एक्कारस दस य णव य अढे वा ।
___ पण पंच पंच तिण्णि य दु दु दु दु एगो य समयगणा ॥ ४१ ॥ ११, ६, ७, ११, १०, ९, ८, ५, ५, ५, ३, २, २, २, २, १।
कायजोगीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १७४ ॥
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १७१ ॥
वह इस प्रकार है-अविवक्षित योगमें स्थित चारों उपशामक और क्षपक जीव उस योगके कालक्षयसे विवक्षित योगको प्राप्त हुए। वहां पर अन्तर्मुहूर्त तक रह करके पुनरपि अविवक्षित योगको प्राप्त हो गए । इस प्रकारसे अन्तर्मुहूर्त काल प्राप्त हो गया।
एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ १७२ ।।
यहां पर एक समयकी प्ररूपणा क्षपकोंके योगपरावर्तन और गुणस्थानपरावर्तनकी अपेक्षा दो प्रकारसे और उपशामकोंकी व्याघातके विना शेष तीन प्रकारोंसे जान करके कहना चाहिए।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १७३ ॥
यहां अन्तर्मुहूर्तकी प्ररूपणा जान करके कहना चाहिए। यहां पर एक समयसम्बन्धी विकल्पोंके प्ररूपण करने के लिए यह गाथा है
मिथ्यादृष्टयादि गुणस्थानोंमें क्रमशः ग्यारह, छह, सात, ग्यारह, दश, नौ, आठ, पांच, पांच, पांच, तीन, दो, दो, दो, दो और एक, इतने एक समयसम्बन्धी प्ररूपणाके विकल्प होते हैं । ११, ६, ७, ११, १०, ९, ८, ५, ५, ५, ३, २, २, २, २, १॥ ४०॥
काययोगियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १७४ ॥
१ उत्कर्षेणान्तर्मुहूर्तः। स. सि. १, ८. २ काययोगिषु मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया सर्वः कालः । स. सि. १, ८.
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