Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, १६७. ] कालाणुगमे मण-वचिजोगिकालपरूवणं
[११३ ___ कुदो ? णाणाजीव पडुच्च जहण्णण एगो समओ, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो; एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण छ आवलियाओ; इच्चेदेहि पंचमण-वचिजोगसासणाणं ओघसासणेहिंतो भेदाभावा । एत्थ वि जोग-गुणपरावत्ति-मरणवाघादेहि समयाविरोहेण एगसमयपरूवणा कायया ।
सम्मामिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १६६ ॥
उदाहरणं- सतह जणा बहुगा वा मिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी संजदासजदा पमत्तसंजदा वा अप्पिदमण-वचिजोगेसु द्विदा अप्पिदजोगद्धाए एगसमओ अत्थि त्ति सम्मामिच्छत्तं गदा । एगसमयमप्पिदजोगेण सह दिट्ठा, विदियसमए सव्ये अणप्पिदजोगं गदा । एवं मरणेण विणा जोग-गुणपरावत्ति-वाघादेहि एगसमयपरूवणा चिंतिय वत्तव्या।
उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १६७॥
कुदो ? अप्पिदजोगेण सहिदसम्मामिच्छादिट्ठीणं पवाहस्स अच्छिण्णरूवस्स पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागायामस्सुवलंभा।
क्योंकि, नाना जीवों की अपेक्षा जघन्यसे एक समय, उत्कर्षसे पल्योपमका असंख्यातवां भाग, एक जीवकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे छह आवलियां, इस रूपसे पांचो मनोयोगी और पांचों वचनयोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंके कालका ओघसम्बन्धी सासादनोंके कालसे कोई भेद नहीं है। यहां पर भी योगपरावर्तन, गुणस्थानपरावर्तन, मरण और व्याघातके द्वारा आगमके अविरोधसे एक समयकी प्ररूपणा करना चाहिए।
पांचों मनोयोगी और पांचों वचनयोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा एक समय होते हैं ॥ १६६ ॥
उदाहरण-विवक्षित मनोयोग अथवा वचनयोगमें स्थित सात आठ जन, अथवा बहुतसे मिथ्यादृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत अथवा प्रमत्तसंयत जीव उस विवक्षित योगके कालमें एक समय अवशिष्ट रह जाने पर सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुए और एक समयमात्र विवक्षित योगके साथ दृष्टिगोचर हुए। द्वितीय समयमें सभीके सभी अविवक्षित योगको चले गये। इसी प्रकार मरणके विना शेष योगपरावर्तन, गुणस्थानपरावर्तन और व्याघात, इन तीनोंकी अपेक्षा एक समयकी प्ररूपणा चिंतन करके करना चाहिए । ___ सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भाग है ॥१६॥
क्योंकि, विवक्षित योगसे सहित सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका अविच्छिन्नरूप प्रवाह पल्योपमके असंख्यातवें भाग लम्बे काल तक पाया जाता है।
१ सम्यग्मिप्यादृष्टे नाजीवापेक्षया जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, .. २ उत्कर्षेण पल्योपमासंख्येयभागः । स. सि. १,..
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