Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१२०] छैक्खंडागमे जीवहाणं
१, ५, १८५. सासणसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ १८५ ॥
तं जधा- सत्तट्ठ जणा बहुआ वा सासणा सगद्धाए एगसमओ अत्थि ति ओरा. लियमिस्सकायजोगिणो जादा । एगसमयमच्छिदूण विदियसमए मिच्छत्तं गदा । लद्धो ओरालियमिस्सेण सासणाणमेगसमओ।
उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १८६ ॥
तं जधा- सत्तट्ठ जणा बहुआ वा सासणा ओरालियमिस्सकायजोगिणो जादा । सासणगुणेण अंतोमुहुत्तमच्छिय ते मिच्छत्तं गदा । तस्समए चेय अण्णे सासणा ओरालियमिस्सकायजोगिणो जादा । एवमेक-दो-तिणि आदि कादूण जाव उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्तवारं सासणा ओरालियमिस्सकायजोगं पडिवज्जावेदव्वा । तदो णियमा अंतरं होदि । एवमेस कालो मेलाविदो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो होदि ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ ॥ १८७ ॥
औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे एक समय होते हैं ॥ १८५ ॥
जैसे-सात आठ जन, अथवा बहुतसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव, अपने योगके कालमें एक समय अवशेष रहने पर औदारिकमिश्रकाययोगी हो गये। उसमें एक समय रह करके द्वितीय समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त हुए । इस प्रकारसे औदारिकमिश्रकाययोगके साथ सासादनसम्यग्दृष्टियोंका एक समय लब्ध हुआ।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥ १८६ ॥
जैसे- सात आठ जन, अथवा बहुतसे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव औदारिकमिश्रकाययोगी हुए। सासादनगुणस्थानके साथ अन्तर्मुहूर्त काल रह करके पीछे वे मिथ्यात्वको प्राप्त हुए । उसी समय में ही अन्य दूसरे सासादनसम्यग्दृष्टि जीव औदारिकमिश्रकाययोगी हुए । इस प्रकारसे एक, दो, तीनको आदि करके उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र वार सासादनसम्यग्दृष्टि जीव औदारिकमिश्रकाययोगको प्राप्त कराना चाहिए । इसके पश्चात् नियमसे अन्तर हो जाता है। इस प्रकारसे यह सब मिलाया गया काल पस्योपमके असंख्यातवें भागमात्र होता है।
एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल एक समय है ॥ १८७ ॥
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