Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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४०६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ५, १५२. कुदो ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा, एगजीवं पडुच्च जहणेण खुद्दाभवग्गहणं अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा। पज्जत्ताणमपज्जत्ताणं च अंतोमुहुत्तमिच्चेदेहि सुहुमेइंदियपज्जत्तापज्जत्तेहि विसेसाभावा ।
वणप्फदिकाइयाणं एइंदियाणं भंगों ॥ १५२ ।।
कुदो ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अणंतकालमसंखेज्जपोग्गलपरियट्टमिच्चेदेण एइंदिएहिंतो वणप्फदिकाइयाणं भेदाभावा ।
णिगोदजीवा केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १५३ ॥
सुगममेदं सुत्तं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ १५४ ॥
एदं पि सुत्तं सुगमं चेय । उक्कस्सेण अड्डाइजादो पोग्गलपरियढें ॥ १५५ ॥
क्योंकि, नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल, एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल, क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण और अन्तर्मुहूर्त, तथा उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक है । पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवोंका काल अन्तर्मुहूर्त है, इत्यादि रूपसे सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक और अपर्याप्तक जीवोंके साथ सूक्ष्मपृथिवीकायिकादिकके कालमें विशेषताका अभाव है।
वनस्पतिकायिक जीवोंका काल एकेन्द्रिय जीवोंके कालके समान है ॥ १५२ ॥ । क्योंकि, नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल, एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रभवप्रहण और उत्कृष्ट काल अनन्तकालात्मक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन है, इस रूपसे एकेन्द्रियोंसे घनस्पतिकायिक जीवोंके कालका कोई भेद नहीं है।
निगोद जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १५३॥
यह सूत्र सुगम है।
एक जीवकी अपेक्षा निगोद जीवोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है॥ १५४ ॥
यह भी सूत्र सुगम ही है। उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल अढ़ाई पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है ॥ १५५ ।। १ वनस्पतिकायिकानामेकेन्द्रियवत् । स. सि. १, ४.
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