Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवाणं
[१, ५, १४५. सव्वद्धासु एदेसिं विरहाभावा । एगजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमुहृत्तं ॥ १४६ ॥
एदस्सुदाहरणं-एगो अणप्पिदकाइओ अप्पिदकाइएसु उप्पज्जिय सव्वजहण्णमंतोमुहुत्तमच्छिय अणप्पिदकायं गदो।
उकस्सेण संखेज्जाणि वाससहस्साणि ॥ १४७॥
सुद्धपुढविजीवाणमाउद्विदिपमाणं वारह वस्ससहस्सा (१२०००), खरपुढविकाइयाणं वावीस वस्ससहस्सा (२२०००), आउकाइयपज्जत्ताणं सत्त वाससहस्सा (७०००), तेउकाइयपज्जत्ताणं तिण्णि दिवसा (३), वाउकाइयपज्जत्ताणं तिणि वाससहस्साणि (३०००), वणप्फइकाइयपज्जत्ताणं दस वाससहस्साणि ( १०००० ) उक्कस्साउहिदिपमाणं होदि । एदासु आउद्विदीसु संखेज्जसहस्तवारमुप्पण्णे संखेज्जाणि वाससहस्साणि होति । उदाहरणं- एगो अणप्पिदकाइयो, अप्पिदकाइयपज्जत्तएसु उववण्णो । पुणो तम्हि चेव संखेजाणि वाससहस्साणि अच्छिय अणप्पिदकाइयं गदो ।
क्योंकि, सभी कालोंमें इन जीवोंके विरहका अभाव है। एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १४६ ॥
इसका उदाहरण-एक अविवक्षितकायिक कोई जीव विवक्षित कायवाले जीवों में उत्पन्न होकर सर्व जघन्य अन्तर्मुहूर्तकाल रह करके अविवक्षित कायको प्राप्त हुआ।
उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल संख्यात हजार वर्ष है ॥ १४७ ॥
शुद्धपीथवीकाायक पर्याप्तक जीवोंकी आयुस्थितिका प्रमाण बारह हजार (१२०००) वर्ष है। खरपृथिवीकायिकपर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण बाईस हजार (२२०००) वर्ष है। जलकायिकपर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण सात हजार (७०००) वर्ष है। तेज. स्कायिकपर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण तीन (३) दिवस है। वायुकायिकपर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण तीन हजार (३०००) वर्ष है। वनस्पतिकायिकपर्याप्तक जीवोंकी स्थितिका प्रमाण दश हजार (१०००) वर्ष है। इन आयुस्थितियों में संख्यात हजार वार उत्पन्न होनेपर संख्यात सहस्र वर्ष हो जाते हैं।
इसका उदाहरण-एक अविवक्षित कायवाला कोई जीव विवक्षित कायवाले पर्यातकों में उत्पन्न हुआ। पुनः उसी ही कायमें संख्यात सहस्र वर्ष रह करके अविवक्षित कायको प्राप्त हो गया।
१पृथिवीकायिकाः द्विविधाः शुद्धपृथिवीकायिकाः खरपृथिवीकायिकाचेति । तत्र शुद्धपृथिवीकायिकानी उत्कृष्टा स्थितिदिश वर्षसहस्राणि । खरपृथिवीकायिकाना द्वाविंशतिवर्षसहस्राणि । वनस्पतिकायिकानां दश वर्षसहस्राणि । अप्कायिकानां सप्तवर्षसहस्राणि । वायुकायिकाना त्रीणि वर्षसहस्राणि । तेजःकायिकानां त्रीणि रात्रिंदिवानि । त. रा. वा. ३, ३९.
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