Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, १५१.] कालाणुगमे थावरकाइयकालपरूवणं
णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा, एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तमिच्चाइणा भेदाभावा । णवरि पंचिंदियअपजत्तएसु णिरंतरुप्पज्जणभववारा चउवीस होति ।
एवमिंदियमग्गणा समत्ता । __ कायाणुवादेण पुढविकाइया आउकाइया तेउकाइया वाउकाइया केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १३९ ॥
कुदो ? सव्वद्धासु एदेसिं संताणस्स विच्छेदाभावा ।। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण खुद्दाभवग्गहणं ॥ १४० ॥
एदस्सुदाहरणं- एगो अणप्पिदकाइओ जीवो अप्पिदकाइएसु उप्पज्जिय सम्बजहणं कालमच्छिय अणप्पिदकाइयं गदो । लद्धो जहण्णेण खुद्दाभवग्गणकालो।
उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा ॥ १४१ ॥
नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल, एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है, उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है, इत्यादिक रूपसे कोई भेद नहीं है। विशेष बात यह है कि पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक जीवों में लगातार निरन्तर उत्पन्न होनेके भववार चौवीस होते हैं ।
इस प्रकार इन्द्रियमार्गणा समाप्त हुई। कायमार्गणाके अनुवादसे पृथिवीकायिक, जलकायिक, तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते है ॥ १३९ ॥
क्योंकि, सभी कालोंमें इन पृथिवीकायिकादिकोंकी संतान-परम्पराका विच्छेद नहीं होता है। .. एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका जघन्य काल क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण है ॥१४॥
__इसका उदाहरण-अविवक्षित कायवाला कोई एक जीव विवक्षित कायवाले जीवों में उत्पन्न होकर सर्व जघन्य काल रह कर अविवक्षित कायको प्राप्त हुआ। तब क्षुद्रभवग्रहणप्रमाण जघन्य काल उपलब्ध हुआ।
एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है ॥ १४१॥
१ कायानुवादेन पृथिव्यप्तेजोवायुकायिकाना नानाजीवापेक्षया सर्वः कालः। स. सि. १, ८. २ एकजीवं प्रति जघन्येन क्षुद्रभवग्रहणम् । स. सि.१, ८. ३ उत्कर्षेणासंख्येयः कालः । स. सि. १,८.
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