Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, २१.]
कालाणुगमे उवसामगकालपरूवणं तं कधं ? सत्तह वा चउवण्णा वा अप्पमत्ता अपुव्वकरणउवसामगा जादा जाव ते अणियट्ठिाणं ण पावेंति ताव अण्णे वि अण्णे वि अप्पमत्ता अपुव्यकरणगुणट्ठाणं पडिवज्जावेदव्वा । ओयरमाणअणियट्टिणो वि अपुव्यकरणं पडिवज्जावेदव्या । एवं चढंतओयरंतजीवेहि असुण्णं होदण अपुव्यकरणगुणट्ठाणं अच्छदि जाव तपाओग्गउक्कस्संतोमुहुत्तं ति । तदो णिच्छएण विरहो । एवं चेव तिण्हमुवसामगाणमुक्कस्सकालपरूवणा कादव्वा । णवरि उवसंतकसायस्त उक्कस्सकाले भण्णमाणे एगो उवसंतकसाओ चडिय जाव णोअरदि ताव अण्णे सुहुमसांपराइया उवसंतकसायगुणट्ठाणं चडावेदव्या । एवं पुणो संखेज्जवारं चडाविय उवसंतकालो वड्ढावेदव्यो जाव तप्पाओग्गुक्कस्सअंतोमुहुत्तं पत्तो ति।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २४ ॥
तं कधं ? एक्को अणियट्टिउवसामगो एगसमयं जीविदमत्थि त्ति अपुव्बउवसामगो जादो एगसमयं दिट्ठो विदियसमए मदो लयसत्तमो देवो जादो। एवं तिण्हमुवसामगाणमेगसमयपरूवणा वत्तव्वा । णवरि अणियट्टि-सुहुमउवसामगाणं चढणोयरणविहाणेण वेहि
___ वह इस प्रकार है- सात आठसे लेकर चौपन तक अप्रमत्तसंयत जीव एकसाथ अपूर्वकरणगुणस्थानी उपशामक हुए। जब तक वे अनिवृत्तिकरणगुणस्थानको नहीं प्राप्त होते हैं, तब तक अन्य अन्य भी अप्रमत्तसंयत जीव अपूर्वकरणगुणस्थानको प्राप्त करना चाहिए । इसी प्रकारसे उपशमश्रेणीसे उतरनेवाले अनिवृत्तिकरणगुणस्थानी उपशामक भी अपूर्वकरणगुणस्थानको प्राप्त कराना चाहिए। इस प्रकार चढ़ते और उतरते हुए जीवोंसे अशून्य (परिपूर्ण) होकर अपूर्वकरणगुणस्थान उसके योग्य उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्तकाल पूरा होने तक रहता है। इसके पश्चात् निश्चयसे विरह (अन्तराल) हो जाता है। इसी प्रकारसे तीनों ही उपशामकोंके उत्कृष्ट कालकी प्ररूपणा करना चाहिए। विशेष बात यह है कि उपशान्तकषाय उपशामकके उत्कृष्ट कालको कहनेपर एक उपशान्तकषाय जीव चढ़ करके जब तक नहीं उतरता है, तब तक अन्य अन्य सूक्ष्मसाम्परायिक संयत उपशान्तकषायगुणस्थानको चढ़ाना चाहिए। इस प्रकारसे पुनः संख्यातवार जीवों को चढ़ाकर उपशान्तकाल उसके योग्य उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त प्राप्त होने तक बढ़ाना चाहिए।
एक जीवकी अपेक्षा चारों उपशामकोंका जघन्य काल एक समय है ॥ २४ ॥
वह इस प्रकार है-एक अनिवृत्तिकरण उपशामक जीव एक समयमात्र जीवन शेष रहने पर अपूर्वकरण उपशामक हुआ, एक समय दिखा, और द्वितीय समयमें मरणको प्राप्त हुआ, तथा उत्तम जातिका अनुत्तरविमानवासी देव हो गया। इसी प्रकार शेष तीनों उपशामकों के एक समयकी प्ररूपणा करना चाहिए। विशेष बात यह है कि अनिवृत्तिकरण
१ एकजीवापेक्षया च जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ८.
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