Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, ६१.] कालाणुगमे तिरिक्खकालपरूवणं
[३६९ कुदो ? अपज्जत्तत्तेण एदेसिमपरिणदाणं पच्छा सेसपुबकोडीओ परिब्भमणे संभवाभावा । अपज्जत्तएसु कधमित्थिवेदस्त संभवो ? ण, अपज्जत्तित्थिवेदाणमण्णोण्णविरोहाभावा । पंचिंदियतिरिक्खजोणिणीसु पण्णारस पुयकोडीओ ममाविय पच्छा देवुत्तरकुरवेसु उप्पादेदव्यो । कुदो ? वेदंतरसंकंतीए अभावादो । णत्थि अण्णो कोइ विसेसो ।
सासणसम्मादिट्टी सम्मामिच्छादिट्ठी ओघं ॥ ६०॥
कुदो ? तिसु वि पंचिंदियतिरिक्खेसु विददोगुणहाणाणं णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, अंतोमुहुतं । उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेजदिभागो। एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ, अंतोमुहुत्तं । उक्कस्सेण छावलियाओ अंतोमुहुत्तमिदि एदेहि विसेसाभावा ।
असंजदसम्मादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ ६१ ॥ ____ कुदो ? तिसु वि पंचिंदियतिरिक्खेसु असंजदसम्मादिविविरहिदकालाभावा ।
साथ अपरिणत हुए, अर्थात् लब्ध्यपर्याप्तक हुए विना, उक्त जीवोंके पश्चात् शेष पूर्वकोटियां परिभ्रमण करना संभव नहीं है ।
शंका- लब्ध्यपर्याप्तकों में स्त्रीवेद कैसे संभव है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, लब्ध्यपर्याप्त और स्त्रीवेद, इन दोनों अवस्थाओंमें परस्पर कोई विरोध नहीं है। - पंचेन्द्रिय तियच योनिमतियों में पन्द्रह पूर्वकोटियों तक भ्रमण कराके पश्चात् देवकुरु और उत्तरकरु में उत्पन्न कराना चाहिए, क्योंकि, भोगभूमिमें वेद-परिवर्तनका अभाव है। इसके सिवाय अन्य कोई विशेषता नहीं है।
उक्त तीनों प्रकारके तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका काल ओघके समान है ॥६०॥
क्योंकि, तीनों ही पंचेन्द्रिय तिर्यंचों में स्थित उक्त दोनों गुणस्थानोंका नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और अन्तमहर्त है। तथा उत्कृष्ट काल पल्योपमका असंख्यातवां भाग है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय और अन्तर्मुहूर्त, तथा उत्कृष्ट काल छह आवलियां और अन्तर्मुहूर्त है। इस प्रकार इन दोनों गुणस्थानोंसे उक्त तीनों पंचेन्द्रिय जीवोंके कालोंमें कोई विशेषता नहीं है।
उक्त तीनों प्रकारके तिर्यंच असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्व काल होते हैं ॥ ६१ ॥
क्योंकि, तीनों ही प्रकारके पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोसे रहित कालका अभाव है।
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