Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, ८. एगसमयं सासाणगुणेण सह द्विदो, विदियसमए मिच्छत्तं गदो। एवं सासणगुणस्स लद्धो एगसमओ।
उक्कस्सेण छ आवलिआओं ॥८॥ ___एदस्स अत्थो वुच्चदे- एक्को उवसमसम्माइट्ठी उवसमसम्मत्तद्धाए छ आवलियाओ अत्थि त्ति सासणं गदो। तत्थ सासणगुणम्हि छ आवलियाओ अच्छिद्ग मिच्छत्तं गदो । कुदो ? साहियासु छसु आवलियासु सेसासु सासगगुणपडिवज्जणाभावा । वुत्तं च--
उवसमसम्मत्तद्धा जइ छावलिया हवेज्ज अवसिट्ठा ।
तो सासणं पवज्जइ णो हेटक्कटकालेसु॥ ३२ ॥ सम्मामिच्छाइट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥९॥
इस ऊपर बतलाए हुए प्रकारसे उक्त जीव एक समय मात्र सासादन गुणस्थानके साथ, अर्थात् उस गुणस्थानमें, दिखाई दिया, और द्वितीय समयमें मिथ्यात्वको प्राप्त हो गया। इस प्रकार सासादनगुणस्थानका एक जीवकी अपेक्षा जघन्यकाल एक समयप्रमाण उपलब्ध हुआ।
एक जीवकी अपेक्षा सासादनसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्टकाल छह आवलीप्रमाण है।॥८॥
अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- एक उपशमसम्यग्दृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्वके कालमें छह आवलियोंके शेष रहनेपर सासादनगुणस्थानमें गया। उस सासादनगुणस्थानमें छह आवली रह करके मिथ्यात्वमें गया, क्योंकि, साधिक छह आवलियोंके शेष रहनेपर सासाइनगुणस्थानको प्राप्त होनेका अभाव है। कहा भी है
यदि उपशमसम्यक्त्वका काल छह आवलीप्रमाण अवशिष्ट होवे, तो जीव सासादन गुणस्थानको प्राप्त होता है। यदि इससे अधिक काल अवशिष्ट रहे, तो सासादनगुणस्थानको नहीं प्राप्त होता है ॥ ३२॥
(इस प्रकार एक जीव की अपेक्षा छह आवलीप्रमाण ही सासादनगुणस्थानका उत्कृष्टकाल है।)
सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त तक होते हैं ॥ ९ ॥
१ उत्कर्षेण षडावलिकाः । स. सि. १,८.
२ उवसमसम्मत्तदा छावलिमेत्तो दु समयमेत्तो ति । अवसिढे आसाणो अणअण्णदरुदयदो होदि ॥ कन्धि , १...
३ सम्यग्मिन्यादृष्टे नाजीवापेक्षया जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८.
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