Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३४८] छक्खंडागमे जीवडाणं
[१, ५, १६. एदेहि णवहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणपुव्वकोडीए अदिरित्ताणि समऊणतेत्तीससागरोवमाणि असंजदसम्मादिहिस्स उक्कस्सकालो होदि । किमर्से समऊणतेत्तीससागरोवमाउठिदिएसु देवेसुप्पादिदो ? ण, अण्णहा असंजदद्धाए दीहत्ताणुवलंभा । कुदो ? जदि तेत्तीससागरोवमाउद्विदिएसु देवेसु उप्पादिज्जदि, तो वासपुधत्तावसेसे आउए णिच्छएण संजमं पडिवज्जदि । जो पुण समऊणतेत्तीससागरोवमाउट्ठिदिएसु देवेसुववन्जिय मणुसेसु उववण्णो, सो अंतोमुहुत्तूणपुव्वकोडिमसंजमेण सह अच्छिय पुणो णिच्छएण संजदो होदि, तेण समऊणतेत्तीससागरोवमाउछिदिएसु देवेसुप्पादिदो ।
संजदासंजदा केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥१६॥
एदस्स सुत्तस्स अत्यो सुगमो, असंजदसम्मादिविम्हि परूविदत्तादो ।
इन नौ अन्तर्मुहूतौसे कम पूर्वकोटि कालसे अतिरिक्त तेतीस सागरोपम असंयतसम्यग्दृष्टिका उत्कृष्ट काल होता है।
शंका-ऊपर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानका उत्कृष्ट काल बतलाते हुए उक्त जीवको एक समय कम तेतीस सागरोपम आयुकी स्थितिवाले देवोंमें ही किसलिए उत्पन्न कराया गया है?
समाधान-नहीं, अन्यथा, अर्थात् एक समय कम तेतीसं सागरोपमकी स्थितिवाले देवों में यदि उत्पन्न न कराया जाय तो, असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानके काल में दीर्घता नहीं पाई जा सकती है, क्योंकि, यदि पूरे तेतीस सागरोपम आयुकी स्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न कराया जायगा तो, वर्षपृथक्त्वप्रमाण आयुके अवशेष रहने पर निश्चयसे वह संयमको प्राप्त हो जायगा । किन्तु जो एक समय कम तेतीस सागरोपम आयुकी स्थितिवाले देवोंमें उत्पन्न होकर मनुष्यों में उत्पन्न होगा, वह अन्तर्मुहूर्त कम पूर्वकोटि प्रमाणकाल असंयमके साथ रह कर पुन: निश्चयसे संयत होगा। इसलिए, अर्थात्, असंयतसम्यक्त्वके कालकी दीर्घता बतानेके लिए, एक समय कम तेतीस सागरोपम आयुकी स्थितिवाले अनुत्तरविमानवासी देवोंमें उत्पन्न कराया गया है।
संयतासंयत जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १६॥
इस सूत्रका अर्थ सुगम है, क्योंकि, असंयतसम्यग्दृष्टिगुणस्थानके कालमें उसका प्ररूपण किया जा चुका है।
१संयतासंयतस्य नानाजीवापेक्षया सर्वः कालः । स. सि. १.८.
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