Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३५० ] __ छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ५, १८. उक्कस्सेण पुरकोडी देसूणा ॥ १८ ॥
तं कधं ? एक्को तिरिक्खो मणुस्सा वा अट्ठावीससंतकम्मिगो मिच्छाइट्ठी सण्णिपंचिंदियतिरिक्खसमुच्छिमपज्जत्तएसु मच्छ-कच्छव-मंडूकादिसु उववण्णो । सबलहुएण अंतोमुहुत्तकालेण सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो जादो (१)। विस्संतो (२) विसुद्धो (३) होदूण संजमासंजमं पडिवण्णो। पुचकोडिकालं संजमासंजममणुपालिदूण मदो सोधम्मादि-आरणच्चुदंतेसु देवेसु उववण्णो । णट्ठो संजमासंजमो । एवमादिल्लेहि तीहि अंतोमुहुत्तेहि ऊणा पुचकोडी संजमासंजमकालो होदि ।
पमत्त-अप्पमत्तसंजदा केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ १९ ॥
जेण तिसु वि कालेसु पमत्तापमत्तसंजदेहि विरहिदो एगो वि समओ णत्थि, तेण सम्बद्धं हवंति ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं ॥ २० ॥
संयतासंयत जीवका उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि वर्षप्रमाण है ॥ १८ ॥
वह काल इस प्रकार संभव है-मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाला एक तिर्यंच अथवा मनुष्य मिथ्यादृष्टि जीव, संज्ञी पंचेन्द्रिय और पर्याप्तक, ऐसे संमूर्छन तिर्यंच मच्छ, कच्छप, मेंडकादिकों में उत्पन्न हुआ, सलघु अन्तर्मुहूर्तकाल द्वारा सर्व पर्याप्तियोंसे पर्याप्तपनेको प्राप्त हुआ (१)। पुनः विश्राम लेता हुआ (२), विशुद्ध हो करके (३), संयमासंयमको प्राप्त हुआ। वहां पर पूर्वकोटी काल तक संयमासंयमको पालन करके मरा और सौधर्मकल्पको आदि लेकर आरण अच्युतान्त कल्पोंके देवोंमें उत्पन्न हुआ। तब संयमासंयम नष्ट हो गया। इस प्रकार आदिके तीन अन्तर्मुहूतोंसे कम पूर्वकोटिप्रमाण संयमासंयमका काल होता है।
प्रमत्त और अप्रमत्तसंयत कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ ११॥
चूंकि, तीनों ही कालोंमें प्रमत्त और अप्रमत्तसंयतोंसे विरहित एक भी समय नहीं है, इसलिए वे सर्वकाल होते हैं।
एक जीवकी अपेक्षा प्रमत्त और अप्रमत्तसंयतका जघन्य काल एक समय है ॥२०॥
१ उत्कर्षेण पूर्वकोटी देशोना । स. सि. १,८. २ प्रमताप्रमचयोनीनाजीवापेक्षया सर्वः कालः । स. सि. १,८. ३ एकजीव प्रति जघन्येनैक: समयः। स. सि. १,८.
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