Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, ९. ]
काला गमे सम्मामिच्छादिट्टिकाल परूवणं
दस अत्थो - अट्ठावीस संत कम्मियमिच्छादिट्ठी वेदगसम्मत्तसहिदअसंजद-संजदासंजद- पमत्त संजदा सत्तट्ठ जणा वा, आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्ता वा, पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागमेत्ता वा परिणामपच्चएण सम्मामिच्छत्तं गदा । तत्थ सव्वलहुमतो मुहुत्तमच्छिदूण मिच्छत्तं वा असंजमेण सह सम्मत्तं वा पडिवण्णा । गठ्ठे सम्मामिच्छत्तं । एवं सम्मामिच्छत्तस्स अंतोमुहुत्तकालो सिद्धो । अप्पमत्त संजदो किमिदि सम्मामिच्छत्तं ण
दो ? ण, तस्स संकिलेस - विसोही हि सह पमत्तापुव्त्रगुणे मोत्तूण गुणंतरगमणाभावा । मदरस वि असंजदसम्मादिट्ठिवदिरित्तगुणंतरगमगाभावा । पच्छा सम्मामिच्छादिट्ठी संजमं संजमा संजमं वा किण्ण णीदो ? ण, तस्स मिच्छत्त-सम्मत्तस हिदासंजदगुणे मोत्तूण गुणंतरगणाभावा । किं कारणं ? सहावदो चेय । ण हि सहाओ परपज्जणिओगारुहो, विरोहा ।
इस सूत्र का अर्थ कहते हैं - मोहकर्मकी अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्ता रखनेवाले मिथ्यादृष्टि, अथवा वेदकसम्यक्त्वसहित असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत तथा प्रमत्तसंयत गुणस्थानवाले सात आठ जन, अथवा आवलीके असंख्यातवें भागमात्र जीव, अथवा पल्योपमके असंख्यातवें भागमात्र जीव, परिणामोंके निमित्तसे सम्यग्मिथ्यात्वगुणस्थानको प्राप्त हुए | वहां पर सबसे कम अन्तर्मुहूर्तकालप्रमाण रह करके मिथ्यात्वको, अथवा असंयमके साथ सम्यक्त्वको प्राप्त हुए । तब सम्यग्मिथ्यात्व नष्ट हो गया। इस प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वका अन्तर्मुहूर्त प्रमाण काल सिद्ध हुआ ।
शंका- यहां पर अप्रमत्तसंयत जीव, सम्यग्मिथ्यात्वगुणस्थानको क्यों नहीं प्राप्त
कराया ?
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समाधान - नहीं, क्योंकि, यदि अप्रमत्तसंयत जीवके संक्लेशकी वृद्धि हो, तो प्रमत्तसंयतगुणस्थानको, और यदि विशुद्धि की वृद्धि हो, तो अपूर्वकरण गुणस्थानको छोड़कर दूसरे गुणस्थानों में गमन का अभाव है । यदि अप्रमत्तसंयत जीवका मरण भी हो, तो असंयतसम्यदृष्टि गुणस्थानको छोड़कर दूसरे गुणस्थानोंमें गमन नहीं होता है ।
शंका - सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव अपना काल पूरा कर पीछे संयमको अथवा संयमासंयमको क्यों नहीं प्राप्त कराया गया ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, उस सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवका मिथ्यात्वसहित मिथ्यादृष्टिगुणस्थानको, अथवा सम्यक्त्वसहित असंयतगुणस्थानको छोड़कर दूसरे गुणस्थानों में गमनका अभाव है ।
शंका- - अन्य गुणस्थानों में नहीं जानेका क्या कारण है ?
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समाधान - ऐसा स्वभाव ही है । और स्वभाव दूसरे के प्रश्नके योग्य नहीं हुआ करता है, क्योंकि, उसमें विरोध आता है ।
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