Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, १३. ]
कालानुगमे असंजद सम्मादिट्टिकालपरूवणं
[ ३.५५
विसोहीणं दोन्हं पि कालो दोन्हं विच्चाले दिपडिभग्गकालसहिदो णिच्छरण संखेअगुणो ति अहिप्पारण मिच्छत्तं ण णीदो । अथवा वेदगसम्मादिट्ठी संकिलिस्समाणगो सम्मामिच्छत्तं गदो, सव्वलहुमंतोमुहुत्तकालमच्छिदूण अविणट्ठसंकिलेसो मिच्छत्तं गदो। एत्थ वि कारणं पुत्रं व वतव्वं । एवं दोहि पयारेहि सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णकालपरूवणा गदा ।
उक्करण अंतोमुत्तं ॥ १२ ॥
तं कथं ? एक्को विसुज्झमाणो मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छत्तं गदो, सव्वुक्कस्सअंतोमुहुत्तमच्छिदूण संकिलिट्ठो हो दूण मिच्छत्तं गदो । पुव्विल्लजहण्णकालादो एसो उक्करसकालो संखेज्जगुणो, सब्बुक्कस्सतिकालसमूहत्तादो | अधवा वेदगसम्मादिट्ठी संकिलिस्समाणगो सम्मामिच्छत्तं गदो । सव्वुक्कस्समंतोमुहुत्तकालमच्छिदूण असंजदसम्मादिट्ठी जादो। एत्थ वि कारणं पुव्वं व वत्तव्वं ।
असंजद सम्मादिट्टी केवचिरं कालादो होंति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा' ॥ १३ ॥
और विशुद्धि, इन दोनोंका ही काल, दोनों के अन्तरालमें स्थित प्रतिभाग कालसहित निश्चय से संख्यातगुणा होता है, इस प्रकारके अभिप्रायसे वह वर्धमान विशुद्धिवाला सम्यमिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वको नहीं प्राप्त कराया गया । अथवा, संक्केशको प्राप्त होनेवाला वेदकसम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थानको प्राप्त हुआ, और वहां पर सर्वलघु अन्तर्मुहूर्तकाल रह करके अविनष्टसंक्लेशी हुआ ही मिथ्यात्वको चला गया। यहां पर भी कारण पूर्वके समान ही कहना चाहिए। इस तरह दो प्रकारोंसे सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्यकालकी प्ररूपणा समाप्त हुई ।
एक जीवकी अपेक्षा सम्यग्मिध्यादृष्टि जविका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ १२॥
वह इस प्रकार है- एक विशुद्धिको प्राप्त होनेवाला मिथ्यादृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। वहां पर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रहकर और संक्लेशयुक्त हो करके मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ। पहले बतलाये गए इसी गुणस्थानके जघन्य कालसे यह उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है, क्योंकि, वह सर्वोत्कृष्ट त्रिकालके समूहात्मक है । अथवा, संक्लेशको प्राप्त होने वाला वेदकसम्यग्दृष्टि जीव सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। वहांपर सर्वोत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त काल रद्द करके असंयतसम्यग्दृष्टि हो गया। यहां पर भी कारण पूर्वके समान ही कहना चाहिए । असंयत सम्यग्दृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ १३ ॥
१ असंयतसम्यग्दष्टेनाजीवापेक्षया सर्वः कालः । स. सि. १, ८.
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