Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३४१] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[ १, ५, १०. ___ उकस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ॥१०॥
एदस्स अत्थो वुच्चदे-पुव्वुत्तजीवा सम्मामिच्छत्तं गंतूण तत्थंतोमुहुत्तमच्छिय जाव ते मिच्छत्तं वा सासंजमसम्मत्तं वा ण पडिवज्जंति, ताव अण्णे वि अण्णे वि पुव्वुत्तजीवा सम्मामिच्छत्तं पडिवज्जावेदव्या जाव सव्वुक्कस्सो णाणाजीवावेक्खो पलिदोवमस्स असंखेजदिभागमेत्तकालो जादो त्ति । सो पुण सगरासीदो असंखेज्जगुणो । एदस्स वि कारणं पुव्वं व वत्तव्यं । तदो णियमेण अंतरं होदि ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुत्तं ॥ ११ ॥ ___ एदस्सत्थो वुच्चदे-एक्को मिच्छादिट्टी विसुज्झमाणो सम्मामिच्छत्तं पडिवण्णो । सव्वलहुमंतोमुहुत्तकालमच्छिदण विसुज्झमाणो चेव सासंजमं सम्मत्तं पडिवण्णो । संकिलेसं पूरिय मिच्छत्तं किण्ण गदो ? ण, विसोधिअद्धं संपुण्णमच्छिय संकिलेसं पूरिय मिच्छत्तं गच्छमाणसम्मामिच्छत्तकालस्स बहुत्तप्पसंगा। एक्किस्से विसोहीए कालादो संकिलेस
नाना जीवोंकी अपेक्षा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका उत्कृष्टकाल पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण है ॥ १० ॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- पूर्वोक्त गुणस्थानवी जीव सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त होकर और वहांपर अन्तर्मुहूर्तकाल तक रहकर जबतक वे मिथ्यात्वको अथवा असंयमसहित सम्यक्त्वको नहीं प्राप्त होते हैं, तबतक अन्य अन्य भी पूर्वोक्त गुणस्थानवी ही जीव सम्य. ग्मिथ्यात्वको प्राप्त कराते जाना चाहिए, जबतक कि सर्वोत्कृष्ट नाना जीवों की अपेक्षा रखनेवाला पल्योपमका असंख्यातवां भागमात्र काल पूरा हो। वह काल अपने गुणस्थान वर्ती जीवराशिसे असंख्यातगुणा होता है। इसका भी कारण पूर्वके समान ही कहना चाहिए । उसके पश्चात् नियमसे अन्तर हो जाता है।
एक जीवकी अपेक्षा सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवका जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है ॥११॥
इस सूत्रका अर्थ कहते हैं-एक मिथ्यादृष्टि जीव विशुद्ध होता हुआ सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त हुआ। पुनः सर्वलघु अन्तर्मुहूर्तकाल रह कर विशुद्ध होता हुआ ही असंयमसहित सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ।
शंका-संक्लेशको पूरित करके, अर्थात् संक्लेशपरिणामी होकर, सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीव मिथ्यात्वको क्यों नहीं प्राप्त हुआ ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, विशुद्धिके संपूर्ण काल तक अपने गुणस्थानमें रह करके और संक्लेशको धारण करके मिथ्यात्वको जानेवाले जीवके सम्यग्मिथ्यात्वसंबंधी कालके बहुत्वका प्रसंग हो जायगा। इसका कारण यह है कि एक भी विशुद्धिके कालसे संक्लेश
१ उत्कर्षेण पल्योपमासंख्येयभागः । स. सि. १,८. २ एकजीवं प्रति जघन्यः उत्कृष्टवान्तर्मुहर्तः। स. सि. १,८.
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