Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, ७.] कालाणुगमे सासणसम्मादिहिकालपरूवणं
[३४२ केत्तियं कालं लभामो त्ति इच्छागुणिदफलम्हि पमाणेणोवट्टिदे सगरासीदो असंखेज्जगुणो सासणकालो होदि त्ति घेत्तव्यं । जदि वि एत्थ सुत्तं णत्थि, तो वि एदं वक्खाणं सुत्तं व स दहेदव्यं ।
एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ ॥७॥
एदस्सत्थो- एक्को उवसमसम्मादिट्ठी उवसमसम्मत्तद्धाए एगसमओ अत्थि त्ति सासणं गदो । जदि उवसमसम्मत्तद्धा महंती होदि, तो को दोसो ? ण, सासणगुणद्धाए बहुत्तप्पसंगा । जेत्तियाए उवसमसम्मत्तद्धाए सेसाए जीवो सासणं पडिवज्जदि, तेत्तिओ चेव सासणगुणकालो होदि त्ति आइरियपरंपरागदुवदेसा । वुत्तं च -
उवसमसम्मत्तद्धा जत्तियमेत्ता हु होइ अवसिट्टा । पडिवज्जंता साणं तत्तियमेत्ता य तस्सद्धा ॥ ३१ ॥
भागमात्र उपक्रमण वारोंका कितना काल प्राप्त होगा? इस प्रकार इच्छाराशिसे गुणित फलराशिको प्रमाणराशिसे अपवर्तित करनेपर अपनी राशिसे असंख्यातगुणा सासादनगुणस्थानका काल होता है, ऐसा ग्रहण करना चाहिए। यद्यपि इस विषय में कोई सूत्रप्रमाण उपलब्ध नहीं है, तो भी यह व्याख्यान सूत्रके समान श्रद्धान करने योग्य है।
एक जीवकी अपेक्षा सासादनसम्यग्दृष्टिका जघन्यकाल एक समय है ॥ ७॥
अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- एक उपशमसम्यग्दृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्व कालमें एक समय अवशिष्ट रहनेपर सासादनगुणस्थानको प्राप्त हुआ।
शंका-यदि उपशमसम्यक्त्वका काल अधिक हो, तो क्या दोष है ?
समाधान -नहीं, क्योंकि, उपशमसम्यक्त्वका काल अधिक माननेपर सासादनगुणस्थानकालके भी बहुत्वका प्रसंग प्राप्त होता है, अर्थात् सासादनगुणस्थानका काल बहुत मानना पड़ेगा। इसका कारण यह है कि जितने उपशमसम्यक्त्वकालके शेष रहनेपर जीव सासादनगुणस्थानको प्राप्त होता है, उतना ही सासादनगुणस्थानका काल होता है, ऐसा आचार्य-परम्परागत उपदेश है । कहा भी है
जितने प्रमाण उपशमसम्यक्त्वका काल अवशिष्ट रहता है, उस समय सासादनथानको प्राप्त होनेवाले जीवोंका भी उतने प्रमाण ही उसका, अर्थात् सासादन गुणस्थानका, काल होता है ॥ ३१॥
१ एकजीवं प्रति जघन्येनैकः समयः । स. सि. १, ..
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