Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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३२६]
छक्खंडागमे जीवाणं
[ १, ५, ४.
विरोहो णत्थि, तो वि बुद्धीए आदि काढूण णोकम्प्रपोग्गल परियट्टे भण्णमाणे अप्पिदपोग्गल परियदृब्भंतरे सव्वयोग्गलासिम्हि एक्को वि परमाणू ण भुत्तोत्ति सव्यपोग्गलाणमगहिदसण्णा पोग्गल परियट्टपढमसमए कादव्या । अदीदकाले वि सव्वजीवेहि सव्वपोग्गलाणमणंतिम भागो सव्वजीवरासीदो अनंतगुणो, सव्वजीवरासिउवरिमवग्गादो अनंतगुणहीण पोग्गलपुंजो भुतुज्झिदो । कुदो ? अभवसिद्धिएहि अनंतगुणेण सिद्धाणमगंतिमभागेण गुणिदादीदकाल मे त्तसव्य जीवरासिसमाण भुत्तु ज्झिदपोग्गल परिमाणोवलंभा । सव्वे विपोग्गला खलु एगे' भुत्तज्झिदा हु जीवण । असई अनंतखुत्तो पोग्गल परियट्टसंसारे ॥ १८ ॥
एदी सुत्त गाहाए सह विरोहो किण्ण होदित्ति भणिदे ण होदि, सव्वेगदे सम्हि गाहत्य सव्वसद्दष्पवृत्ती दो । ण च सव्त्रम्हि पयट्टमाणस्स सदस्य एगदेसपउत्ती असिद्धा, गामो दद्धो, पदो दद्धो, इच्चादिसु गाम-पदाण मे गदेस पय हसवलं भादो । तेण पोग्गल
विवक्षित पुगलपरमाणुपुंजको ) आदि करके नोकर्मपुङ्गपरिवर्तन के कहनेपर विवक्षित पुलपरिवर्तन के भीतर सर्वपुद्गलराशिमेंसे एक भी परमाणु नहीं भोगा है, ऐसा समझकर पुलपरिवर्तन के प्रथम समय में सर्व पुगलोंकी अगृहीतसंज्ञा करना चाहिए। अतीतकाल में भी सर्व जीवोंके द्वारा सर्वपुद्गलोंका अनन्तवां भाग, सर्वजीवराशिसे अनन्तगुणा, और सर्वजीवराशिके उपरिम वर्गले अनन्तगुणहीन प्रमाणवाला पुद्गलपुंज भोगकर छोड़ा गया है । इसका कारण यह है कि अभव्यसिद्ध जीवोंसे अनन्तगुणे और सिद्धों के अनन्तवें भागसे गुणित अतीतकालप्रमाण सर्वजीवराशिके समान भोग करके छोड़े गये पुलोंका परिमाण पाया जाता है ।
शंका- यदि जीवने आज तक भी समस्त पुद्गल भोगकर नहीं छोड़े हैं, तोइस पुलपरिवर्तनरूप संसार में समस्त पुद्गल इस जीवने एक एक करके पुनः पुनः अनन्तवार भोग करके छोड़े हैं ॥ १८ ॥
इस सूत्रगाथा के साथ विरोध क्यों नहीं होगा ?
समाधान – उक्त सूत्रगाथा के साथ विरोध प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि, गाथा में स्थित सर्व शब्दकी प्रवृत्ति सर्व के एक भाग में की गई है । तथा, सर्वके अर्थ में प्रवर्तित होनेवाले शब्दकी एकदेशमें प्रवृत्ति होना असिद्ध भी नहीं हैं, क्योंकि, ग्राम जल गया, पद (जनपद) जल गया, इत्यादिक वाक्यों में उक्त शब्द ग्राम और पदोंके एक देशमें प्रवृत्त हुए भी पाये
१ प्रतिषु ' एगो ' इति पाठः ।
२ स. सि. २, १०. गो. जी., जी. प्र. ५६०.
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