Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ५, ३.
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एगजीवं पच अणादिओ अपज्जवसिदो अणादिओ सपज्जवसिदो, सादिओ सपज्जवसिदो । जो सो सादिओ सपज्जवसिदो तस्स इमो णिसो । जहणेण अंत मुहुत्तं ॥ ३ ॥
अभवसिद्धियजीवमिच्छत्तं पडुच्च अणादिअपज्जवसिदमिदि भणिदं, अभव्यमिच्छत्तस्स आदिमज्झताभावाद । भवसिद्धियमिच्छत्तकालो अणादिओ सपज्जवसिदो | जहा बद्धणकुमारस्स मिच्छत्तकालो । अण्णेगो भवसिद्धियमिच्छत्तकालो सादिओ सपज्जसिदो । जहा कण्हादिमिच्छत्तकालो । तत्थ जो सो सादिओ सपज्जवसिदो मिच्छत्त कालो, तस्स इमो णिसो । सो दुविहो, जहण्णो उकस्सो चेदि । तत्थ जहण्णकालपरूवणाजाणावङ्कं जहणेणेत्ति वृत्तं । मुहुत्तस्संतो अंतोमुहुत्तं, एसो मिच्छत्तजहण्णकालणिद्देसो । तं जधा - सम्मामिच्छादिट्ठी वा असंजदसम्मादिट्ठी वा संजदासंजदो वा पमत्तसंजदो वा परिणामपच्चएण मिच्छत्तं गदो । सव्वजहणमंतोमुहुत्तं अच्छिय पुणरवि सम्मामिच्छत्तं वा असंजमेण सह सम्मतं वा संजमासंजमं वा अप्पमत्तभावेण संजमं वा पडिवण्णस्स
एक जीवकी अपेक्षा काल तीन प्रकार है, अनादि - अनन्त, अनादि-सान्त और सादि- सान्त । इनमें जो सादि और सान्त काल है, उसका निर्देश इस प्रकार है- एक जीवकी अपेक्षा मिथ्यादृष्टि जीवोंका सादि-सान्तकाल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त है ॥ ३ ॥ अभव्यसिद्धिक जीवोंके मिध्यात्वकी अपेक्षा 'काल अनादि-अनन्त है' ऐसा कहा गया है, क्योंकि, अभव्यके मिध्यात्वका आदि, मध्य और अन्त नहीं होता है । भव्यसिद्धिक जीवके मिथ्यात्वका काल एक तो अनादि और सान्त होता जैसा कि वर्द्धनकुमारका मिथ्यात्वकाल | तथा एक और प्रकारका भव्यसिद्धिक जीवोंका मिध्यात्वकाल है, जो कि सादि और सान्त होता है, जैसे कृष्ण आदिका मिथ्यात्वकाल । उनमें से जो सादि और सान्त मिथ्यात्वकाल होता है उसका यह निर्देश है । वह दो प्रकारका है, जघन्यकाल और उत्कृष्टकाल | उनमें से जघन्यकालकी प्ररूपणा की जाती है, यह बतलाने के लिए 'जघन्यसे ' ऐसा पद कहा | मुहूर्त के भीतर जो काल होता है, उसे अन्तर्मुहूर्तकाल कहते हैं । इस पद से मिथ्यात्वके जघन्यकालका निर्देश कहा गया है, जो कि इस प्रकार है
कोई सम्यग्मिथ्यादृष्टि, अथवा असंयतसम्यग्दृष्टि, अथवा संयतासंयत, अथवा प्रमत्तसंयत जीव, परिणामोंके निमित्तसे मिध्यात्वको प्राप्त हुआ । सर्व जघन्य अन्तर्मुहूर्तकाल रद्द करके, फिर भी सम्यग्मिथ्यात्वको, अथवा असंयमके साथ सम्यक्त्वको, अथवा संयमासंयमको, अथवा अप्रमत्तभाव के साथ संयमको प्राप्त हुआ। इस प्रकार से प्राप्त होनेवाले जीवके
१ एकजीवापेक्षया त्रयो मङ्गाः - अनादिरपर्यवसानः अनादिसपर्यवसानः सादिसपर्यवसानचेति । तत्र सादिः सपर्यवसानो जघन्येनान्तर्मुहूर्त्तः । स. सि. १,८.
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