Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२९६ ] छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[१, ४, १५४० लोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो । विहार वेदण-कसाय-उब्धियमारणंतियपरिणदेहि देसूण-अट्ठचोद्दस भागा। उववादपरिणदेदि दिवड्ड-चोद्दसभागा देसूणा पोसिदा । णवरि सम्मामिच्छादिहिस्स मारणंतिय-उववादा णत्थि। सणक्कुमार-माहिंदे तेउलेस्सा अत्थि त्ति उववादस्स देसूण-तिण्णि-चौदसभागा किण्ण होति ? ण, सोधम्मीसाणादो संखेज्जाणि चेव जोयणाणि गंतूग सणक्कुमार-माहिंदकप्पपारंभो होदूण दिवड्डरज्जुम्हि परिसमत्तीदो। तस्सुपरिमपेरते तेउलेस्सिया किण्ण होंति ? ण, तस्स हेडिमविमाणे चेव तेउलेस्सासंभवोवदेसा ।
संजदासंजदेहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥१५॥
एदस्स परूवणा खेत्तभंगा, वट्टमाणकालसंबंधादो । दिवड्ड चोदसभागा वा देसूणा ॥ १५५॥
संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिकपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह (6) भाग स्पर्श किये हैं। उपपादपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह ( ) भाग स्पर्श किये हैं। विशेष बात यह है कि सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद, ये दो पद नहीं होते हैं।
__ शंका-सानत्कुमार और माहेन्द्रकल्पमें तेजोलेश्या होती है, इसलिए उपपादका देशोन तीन बटे चौदह ( भागप्रमाण स्पर्शनक्षेत्र क्यों नहीं होता है ?
समाधान नहीं, क्योंकि, सौधर्म और ईशानकल्पसे संख्यात योजन ही ऊपर जाकर सानत्कुमार और माहेन्द्रकल्प प्रारम्भ होकर डेढ़ राजुपर समाप्त हो जाता है।
शंका-सानत्कुमार-माहेन्द्रकल्पके उपरिम विमानके अन्ततक तेजोलेश्यावाले जीव क्यों नहीं होते हैं ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, उस कल्पके अधस्तन विमानोंमें ही तेजोलेश्याके होनेका उपदेश पाया जाता है।
तेजोलेश्यावाले संयतासंयत जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १५४ ॥
वर्तमानकालसे सम्बद्ध होनेसे इस सूत्रकी प्ररूपणा क्षेत्रके समान है।
तेजोलेश्यावाले संयतासंयत जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ १५५ ॥
१ संयतासंयतैलोकस्यासंख्येयमागः अध्यर्धचतुर्दशभागा वा देशोनाः । स. सि. १, ८.
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