Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, १५८.] फोसणाणुगमे पम्मलेस्सियफोसणपरूवणं
[२९७ सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउबियपरिणदतेउलेस्सियसंजदासंजदेहि तीदे काले तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणो पोसिदो। मारणंतियपरिणदेहि दिवड्ड-चोदसभागा पोसिदा। उववादो णत्थि ।
पमत्त-अप्पमत्तसंजदा ओघं ॥ १५६ ॥ एवं सुत्तं सुगम, ओघम्हि परूविदत्तादो ।
पम्मलेस्सिएसु मिच्छादिट्टिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेजदिभागों ॥ १५७ ॥
सुगममेदं सुत्तं, खेत्तम्हि उत्तत्थादो । अट्ट चोदसभागा वा देसूणा ॥ १५८ ॥
सत्थाणपरिणदपम्मलेस्सियमिच्छादिट्ठि-सासणसम्मादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीहि तीदे काले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असं
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकपदपरिणत तेजोलेश्यावाले संयतासंयत जीवोंने अतीतकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकसमुद्धातपदपरिणत उक्त जीवोंने (कुछ कम) डेढ़ बटे चौदह (३४) भाग स्पर्श किये हैं । इन जीवोंके उपपादपद नहीं होता है।
तेजोलेश्यावाले प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ॥ १५६ ॥
ओघमें प्ररूपित होनेसे यह सूत्र सुगम है ।
पद्मलेश्यावालोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १५७॥
क्षेत्रप्ररूपणामें कहे जानेके कारण यह सूत्र सुगम है।
पद्मलेश्यावाले उक्त गुणस्थानवी जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पशे किये हैं ॥ १५८ ॥
स्वस्थानपदपरिणत पद्मलेश्यावाले मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने अतीतकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग,
१ प्रमत्ताप्रमत्तैलोकस्यासंख्येयभागः । स. सि. १, ८. - २ पद्मलेश्यैमिथ्यादृष्ट याद्यसंयतसम्यग्दृष्टयन्तैर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ चतुर्दशभागा वा देशोनाः स. सि. १,८.
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