Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ५, १.] कालाणुगमे णिदेसपरूवणं
[३१९. सावित्रो धुर्यसंज्ञश्च दात्रको यम एव च । वायु ताशनो भानुजयन्तोऽष्टमो निशि ॥१४॥ सिद्धार्थः सिद्धसेनश्च विक्षोभो योग्य एव च । पुष्पदन्तः सुगन्धर्वो मुहूर्तोऽन्योऽरुणो मतः ( १५)॥ १५ ॥ समयो रात्रिदिनयोर्मुहूर्त्ताश्च समा स्मृताः ।
षण्मुहूर्त्ता दिनं यान्ति कदाचिच्च पुनर्निशा ॥ १६ ॥ पंचदश दिवसाः पक्षः। दिवसानां नामानि
नन्दा भद्रा जया रिक्ता पूर्णा च तिथयः क्रमात् । देवताश्चन्द्रसूर्येन्द्रा आकाशो धर्म एव च ॥ १७ ॥
९ रोहण, १० बल, ११ विजय, १२ नैऋत्य, १३ वारुण, १४ अर्यमन् और १५ भाग्य । ये पंद्रह मुहूर्त दिनमें होते हैं । १२-१३॥
१ सावित्र, २ धुर्य, ३ दात्रक, ४ यम, ५ वायु, ६ हुताशन, ७ भानु, ८ वैजयन्त, ९ सिद्धार्थ, १० सिद्धसेन, ११ विक्षोभ, १२ योग्य, १३ पुष्पदन्त, १४ सुगन्धर्व और १५ अरुण । ये पन्द्रह मुहूर्त रात्रिमें होते हैं, ऐसा माना गया है ॥ १४-१५ ॥
रात्रि और दिनका समय तथा मुहूर्त समान कहे गये हैं। हां, कभी दिनको छह मुहूर्त जाते हैं, और कभी रात्रिको छह मुहूर्त जाते हैं ॥ १६ ॥
विशेषार्थ-समान दिन और रात्रिकी अपेक्षा तो पन्द्रह मुहूर्तका दिन और इतने ही मुहूतौकी एक रात्रि होती है । किन्तु सूर्यके उत्तरायणकालमें अठारह मुहूर्तका दिन और बारह मुहूर्तकी रात्रि हो जाती है। तथा सूर्यके दक्षिणायनकालमें बारह मुहूर्तका दिन और अठारह मुहूर्तकी रात्रि हो जाती है। इसलिए श्लोकमें कहा है कि छह मुहूर्त कभी दिनको और कभी रात्रिको प्राप्त होते हैं। अर्थात् दिनके तीन और रात्रिके तीन, इस प्रकार छह मुहूर्त कभी दिनसे रात्रिमें और कभी रात्रिसे दिनकी गिनती में आते जाते रहते हैं।
पन्द्रह दिनोंका एक पक्ष होता है । दिनोंके नाम इस प्रकार हैं
नंदा, भद्रा, जया, रिक्ता और पूर्णा, इस प्रकार क्रमसे पांच तिथियां होती हैं । इनके देवता क्रमसे चन्द्र, सूर्य, इन्द्र, आकाश और धर्म होते हैं ॥ १७ ॥
विशेषार्थ-नन्दा आदि तिथियोंके नाम प्रतिपदासे प्रारंभ करना चाहिए, अर्थात् प्रतिपदाका नाम नन्दातिथि है । द्वितीयाका नाम भद्रातिथि है। तृतीयाका नाम जयातिथि है। चतुर्थीका नाम रिक्तातिथि है। पंचमीका नाम पूर्णातिथि है। पुनः षष्ठीका नाम नन्दातिथि है, इत्यादि । इस प्रकारसे प्रतिपदा, षष्ठी और एकादशीका नाम नन्दातिथि है। द्वितीया सप्तमी और द्वादशीका नाम भद्रातिथि है। तृतीया, अष्टमी और त्रयोदशीका नाम जयातिथि है। चतुर्थी, नवमी और चतुर्दशीका नाम रिक्तातिथि है। पंचमी, दशमी तथा पूर्णिमाका नाम पूर्णातिथि है। इसी क्रमसे इनके देवता भी समझ लेना चाहिए ।
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