Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८.] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ४, १२९. .. एदस्स सुत्तस्स अत्थो सुगमो, मूलोघम्हि वित्थरेण परूविदत्तादो । तत्थ णाणविसेसणेण विणा सामण्णेण परूविदमिदि चे ण, सामण्णेण परूविदे वि सा मदि-सुदणाणपरूवणा चेय, मदि-सुदणाणवदिरित्तछदुमत्थसम्मादिट्ठीणमणुवलंभा । ओधिणाणविरहिदसम्मादिट्ठीणमुवलंभा ओधिणाणस्स ओघतं ण जुञ्जदे चे ण, एत्थ दव्यपमाणेण अहियाराभावा । ओघअसंजदसम्मादिद्विआदिफोसणेहि ओधिणाणअसंजदसम्मादिद्विआदिफोसणाणं सरिसत्तुवलंभादो ओधिणाणस्स ओघत्तं जुजदे चेय ।।
मणपज्जवणाणीसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था त्ति ओघं ॥ १२९ ॥
अदीद-वट्टमाणकाले सव्यपदाणमोघसव्वपदेहि सरिसत्तुवलंभादो एत्थ वि ओघतं जुज्जदे।
केवलणाणीसु सजोगिकेवली ओघं ॥ १३०॥
इस सूत्रका अर्थ सुगम है, क्योंकि, मूलोघमें विस्तारसे प्ररूपण किया जा चुका है।
शंका-उस मूलोध स्पर्शनप्ररूपणामें तो शानमार्गणारूप विशेषणके विना सामाम्यसे ही कथन किया गया है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, सामान्यसे प्ररूपित होने पर भी वह मतिज्ञान और श्रुतभानकी ही प्ररूपणा है, क्योंकि, मतिज्ञान और श्रुतझानसे रहित छमस्थ सम्यग्दृष्टि जीव नहीं पाये जाते हैं।
शंका-अवधिज्ञानसे रहित सम्यग्दृष्टि जीव तो पाये जाते हैं, इसलिए अवधिज्ञानके भोघपना नहीं घटित होता है ?
समाधान-नहीं, क्योंकि, यहां पर द्रव्यप्रमाणके अधिकार या प्रकरणका अभाव है। ओघ असंयतसम्यग्दृष्टि आदि जीवोंके स्पर्शनक्षेत्रके साथ अवधिज्ञानी असंयतसम्य. ग्दृष्टि आदिकोंके स्पर्शनसम्बन्धी क्षेत्रोंकी सदृशता पाये जानेसे अवधिज्ञानके ओघपना घटित हो ही जाता है।
___ मनःपर्ययज्ञानियोंमें प्रमत्तसंयतगुणस्थानसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछप्रस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओषके समान है ॥ १२९ ॥
अतीत और वर्तमानकालमें मनःपर्ययज्ञानियों में संभवित सर्वपदोंके स्पर्शनकी ओघ. धर्णित सर्वपदोंके स्पर्शनके साथ सदृशता पाई जानेसे यहां पर भी ओघपना युक्तिसंगत है।
केवलज्ञानियोंमें सयोगिकेवली जिनोंका स्पर्शनक्षेत्र ओषके समान है॥१३०॥
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