Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, १४४.] फोसणाणुगमे चक्खु-अचक्खु-ओधिदंसणिफासणपरूवणं [२८९ . सासणसम्मादिडिप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था त्ति ओघं ॥ १४२॥
___ ओघसासणसम्मादिद्विआदिसयलगुणष्ट्ठाणेहिंतो चक्खुदंसणिसासणसम्मादिद्विआदि- . गुणट्ठाणाणं ण कोवि भेदो, चक्खुदंसणवदिरित्तसासणादिगुणट्ठाणाणमभावादो। तेण ओघमिदि सुटु जुज्जदे।
अचक्खुदंसणीसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव खीणकसायवीदरागछदुमत्था ति ओघ ।। १४३॥
एवं पि सुत्तं सुगम, ओघम्हि वित्थरेण परूविदत्तादो । ण च ओघपरूविदमिच्छादिद्विआदिखीणकसायपजंतगुणट्ठाणाणि अचक्खुदंसणविरहिदाणि अत्थि, तधाणुवलंभादो । तेणेदेसि सव्वेसि पि ओघत्तं जुज्जदे ।
ओधिदसणी ओधिणाणिभंगो ॥ १४४ ॥ सुगममेदं सुत्तं।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकपायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती चक्षुदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान है ।। १४२॥
ओघ सासादनसम्यग्दृष्टि आदि सकल गुणस्थानोंले चक्षुदर्शनी सासादनसम्यग्दृष्टि आदि समस्त गुणस्थानोंके स्पर्शनसम्बन्धी क्षेत्रोंका कोई भेद नहीं है, क्योंकि, चक्षु: दर्शनसे रहित सासादनादि गुणस्थानोंका अभाव है । इसलिए 'ओघ' यह पद भली भांति घटित हो जाता है।
अचक्षुदर्शनियोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर क्षीणकषायवीतरागछद्मस्थ गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती अचक्षुदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघके समान
यह सूत्र भी सुगम है, क्योंकि, ओघप्ररूपणामें विस्तारसे प्ररूपण किया जा चुका है । और ओघप्ररूपित मिथ्यादृष्टि आदि क्षीणकषायपर्यंत गुणस्थान अचक्षुदर्शनसे विरहित हैं नहीं; क्योंकि, ऐसा देखने में नहीं आता । इसलिए इन सभी गुणस्थानोंके ओघपना युक्तिसंगत है।
अवधिदर्शनी जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र अवधिज्ञानियोंके समान है ॥ १४४ ॥ यह सूत्र सुगम है।
१ प्रतिषु 'कोत्थ ' इति पाठः। - २ अचक्षुर्दशनिना मिथ्यादृष्टयादिक्षीणकषायान्तानtxx सामान्योक्तं स्पर्शनम् । स. सि. १,८.
३ अवधि-केवलदर्श निनौ च सामान्योक्तं स्पर्शनम् । स. सि. १,८...
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