Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२८२) छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, ४, १२५. गहणं । केण सह एत्थ पुण पगरिसेण पञ्चासत्ती विज्जदे ? सासणसम्मादिद्विस्स ओघेण । वट्टमाणकाले चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो सगसव्वपदखेतुवलंभादो । तीदे काले वि सत्थाणेण तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागस्स, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागस्स, अड्डाइजादो असंखेज्जगुणस्स; विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउवियपदेसु अट्ठ चोदसभागमेत्तस्स, मारणंतिय-उववादपदेसु वारसेक्कारस-चोद्दसभागखेत्तस्सुवलंभादो । एदमत्थपदं सव्वत्थ वत्तव्यं । .. विभंगणाणीसु मिच्छादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥ १२५॥
एदस्स सुत्तस्स परूवणा खेत्तभंगा, वट्टमाणकालसंबंधित्तादो।
अट्ट चोदसभागा देसूणा सव्वलोगो वा ॥ १२६ ॥ - सत्थाणपरिणदेहि विभंगणाणमिच्छादिट्ठीहि तीदे काले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एसो 'वा'
. शंका-तो यहांपर किस ओघके साथ प्रकर्षतासे प्रत्यासत्ति है ? ' समाधान-सासादनगुणस्थानके ओघके साथ प्रकर्षतासे प्रत्यासत्ति है, क्योंकि, घर्तमानकालमें सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा अपने सर्वपदोंका स्पर्शनक्षेत्र पाया जाता है। अतीतकालमें भी स्वस्थानपदकी अपेक्षा सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा, तथा विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकपदों में आठ बटे चौदह (४) भागमात्र; तथा मारणान्तिक और उपपाद, इन दो पदों में क्रमशः बारह बटे चौदह (१३) और ग्यारह बटे चौदह (१४) भागप्रमाण स्पर्शनका क्षेत्र पाया जाता है । यह अर्थपद सर्वत्र कहना चाहिए।
विभंगज्ञानियों में मिथ्यादृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १२५ ॥
वर्तमानकालसे सम्बन्ध होने के कारण इस सूत्रकी स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रके समान है।
विभंगज्ञानी जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा आठ बटे चौदह भाग और सर्वलोक स्पर्श किया है ॥ १२६॥
स्वस्थानस्वस्थानपदसे परिणत विभंगवानी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीतकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यह 'वा' शब्दका अर्थ है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना,
१ विभंगज्ञानिना मिथ्यादृष्टीना लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ चतुर्दशभागा वा देशोनाः, सर्वलोको वा । स. सि. १,.
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