Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ३, ३.]
खेत्ताणुगमे सासणादिखेत्तपरूवणं अस्थि त्ति कधं णव्यदे ? आइरियपरंपगगदुवदेसादो। किं च 'मिच्छादिट्ठी' इदि सामण्णवयणेण एदे सत्त वि मिच्छाइ ट्ठिविसेसा सूचिदा चेव, एदव्वदिरित्तमिच्छाइट्ठीणम भावादो । मेस चत्तारि वि लागा सुनेण सूचिदा चेत्र, सेसचदुण्हं लोगाणं लोगपुधभूदाणमणुवलंभादो । तम्हा सुत्तसंबद्धमवेदं वक्खाणमिदि ।।
सासणसम्माइटिप्पहुडि जाव अजोगिकेवलि त्ति केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेज्जदिभाएं ॥३॥
___एदस्स सुत्तस्स अत्थं भणिस्सामो। जदि वि सव्वगुणट्ठाणाणं पहुडिसदस्स ववत्थावाइस्स संगहणमंभवो अत्थि, तो वि सजोगिगुणट्ठाणं णो गेण्हदि । कुदो ? पुरदो भण्णमाणबाधगसुत्तदंसणादो । सासणसम्मादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउव्वियसमुग्धादपरिणदा केवडि खेत्ते, लोगस्स असंखेजदिभागे, तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागे, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणे
जीवके पाये जाते हैं, यह कैसे जाना जाता है ?
समाधान - मिथ्यादृष्टि जीवके स्वस्थान आदि सात विशेषण पाये जाते हैं, यह बात आचार्यपरंपरासे आये हुए उपदेशसे जानी जाती है।
दूसरी यह बात है कि सूत्रमें आये हुए 'मिथ्यादृष्टि' इस सामान्य वचनसे स्वस्थान आदि सात विशेषण भी मिथ्यादृष्टिके विशेष हैं, यह सूचित हो ही जाता है, क्योंकि, इनको छोड़कर मिथ्यादृष्टि जीच नहीं पाये जाते हैं। इसीप्रकार घनलोकके अतिरिक्त ऊर्ध्वलोक, अधोलोक, तिर्यग्लोक और अढाई द्वीपसम्बन्धी लोक, ये चार लोक भी सूत्रसे सूचित हो ही जाते हैं, क्योंकि, घनलोकसे पृथग्भूत उपर्युक्त शेष चार लोक नहीं पाये जाते हैं। इसलिये स्वस्थानस्वस्थानराशि आदिका व्याख्यान सूत्रसे संबद्ध ही है।
सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे लेकर अयोगिकेवली गुणस्थानतक प्रत्येक गुणस्थानके जीव कितने क्षेत्र में रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र में रहते
अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं। यद्यपि व्यवस्थावाची प्रभृति शब्दके बलसे सभी गुणस्थानोंका संग्रह संभव है , तो भी यहांपर सयोगिकेवली गुणस्थानका ग्रहण नहीं करना चाहिये, क्योंकि, आगे कहा जानेवाला इसका बाधक सूत्र देखा जाता है । स्वस्थानस्वस्थान, विहारवस्वस्थान, वेदनासमुद्धात, कषायस मुद्धात और वैक्रियिकसमुद्धातरूपसे परिणत हुए सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीव कितने क्षेत्रमें रहते हैं ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रमें, ऊर्ध्वलोक आदि तीन लोकोंके असंख्यातवें भागप्रमाण
१ सासादनसम्यग्दृष्टयादीनामयोगकेवल्यन्तानी लोकस्यासंख्येयभागः। स. सि. १, ८. सासायणाइ सव्वे लोयस्स असंखयम्मि भागम्मि । पश्चस. २, २६.
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