Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२२.४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ४, ४१. सव्वलोगो वा ॥४१॥
सत्थाण वेदण-कसायसमुग्धादगदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, माणुसखे तस्स संखेजदिभागो, संखेन्जा भागा वा अदीदकाले पोसिदा । मारणंतिय-उपवादगदेहि सबलोगो पोसिदो, सव्वत्थ गमणागमणे विरोहाभावा ।
देवगदीए देवेसु मिच्छादिदि-सासणसम्मादिधीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥ ४२ ॥
___ एत्थ ताव मिच्छादिट्ठीणं उच्चदे- सत्थाणसत्थाणपरिणदेहिं तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिमागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । एवं विहारवदिसत्थाण-वेदण कसाय-वेउबियपदाणं पि वत्तव्यं । मारणंतिय-उववादगदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, णर-तिरियलोगेहिंतो असंखेज्जगुणो पोसिदो । सासणसम्मादिहिस्स सस्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय वेउव्वियपदाणं खेतोघं । मारणंतिय
लम्ध्यपर्याप्त मनुष्योंने अतीत और अनागतकालकी अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श किया है ॥४१॥
स्वस्थानस्वस्थान, वेदना और कषायसमुद्धातगत लब्ध्यपर्याप्त मनुष्योंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, मनुष्यक्षेत्रका संख्यातवां भाग अथवा संख्यात बहुभाग अतीतकालमें स्पर्श किया है । मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादगत मनुष्योंने सर्वलोक स्पर्श किया है क्योंकि, उनके सर्वत्र गमनानागमन में कोई विरोध नहीं।
देवगतिमें देवोंमें मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ४२॥
यहांपर पहले मिथ्यादृष्टि देवों का रपर्शनक्षेत्र कहते हैं-स्वस्थानस्वस्थानपदसे परिणत मिध्यादृष्टि देवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। इसी प्रकारसे विहारव. स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धात, इन पदोको प्राप्त देवोंका भी पर्शनक्षेत्र वहना चाहिए । मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदव.ले मिथ्यादृष्टि देवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग और नरलोक तथा तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और चैक्रियिकपदवाले सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघश्त्रकी प्ररूपणाके समान है। मारणान्तिक
। देवगतौ देवमिण्याराष्टिसासादनसम्यग्दृष्टि मिलोक स्यासंख्येयमागः अष्टी नव चतुर्दशमागा वा देशोनाः। त. सि. १,८.
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