Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, ४९.] फोसणाणुगमे देवफोसणपरूवणं
[ २५१ आणिज्जमाणे णवजोयणसदबाहल्लं तिरियपदरं सत्तकदीए खंडिदे पदरागारेण तुइदे तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागवाहल्लं जगपदरं होदि ।
सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ४८ ॥
एदस्स सुत्तस्स अत्थो- सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउन्वियमारणंतियपदपरिणदेहि सम्मामिच्छादिट्ठि-असंजदसम्मादिट्ठीहि भवणवासिय-वेंतर-जोदिसिएहि चदुण्डं लोगाणमसंखेज्जदिमागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो ।
अद्धट्ठा वा अट्ठ चोदसभागा वा देसूणा ॥ ४९ ॥
सत्थाणसत्थाणभवणवासिय-वाणतर-जोदिसिय-सम्मामिच्छादिद्वि-असंजदसम्मादिट्ठीहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । णवरि भवणवासिएसु चदुहं लोगाणमसंखेज्जदिभागो पोसिदो त्ति वत्तव्यं । विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउब्धिय-मारणंतियपदपरिणदेहि सम्मा
है कि उनके उपपादक्षेत्रको लाते समय नौ सौ योजन बाहल्यवाले तिर्यक्प्रतरको सातके वर्गद्वारा खंडितकर प्रतराकारसे स्थापित करनेपर तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागप्रमाण बाहल्य. वाला जगप्रतर होता है।
सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भवनत्रिक देवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥४८॥
अब इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, घेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिकसमुद्धात, इन पदोंसे परिणत सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भवनवासी, व्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है।
सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भवनत्रिक देवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम सादे तीन भाग और कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥४९॥
स्वस्थानस्वस्थानपदवाले भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिष्क सम्यग्मिथ्याष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। विशेष बात यह है कि भवनवासियों में सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है, ऐसा कहना चाहिए । विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणा
- १ रज्जुकदी गुणिदव्वं एकसयदसुतरेहिं जोयणए। तस्सि अगम्मदेसं सोधिय सेसम्मि जोदिसिया। ति.प. ७,५.
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