Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, ५७.] फोसणाणुगमे एइंदियफोसणपरूवणं
[२४१ भागो पोसिदो । माणुसखेत्तं ण णव्वदे । अदीदकाले तिहं लोगाणमसंखेञ्जदिभागो, परतिरियलोगेहितो असंखेजगुणो पोसिदो । अदीदकाले पंचरज्जुबाहल्लं तिरियपदरं विउव्वमाणा वाउकाइया फुसंति त्ति । बादरेइंदिय-बादरेइंदियपज्जत्तेहि सत्थाण-वेदण-कसाय' परिणदेहि वट्टमाणकाले तिण्हं लोगाणं संखेजदिभागो, दोलोगेहितो असंखेज्जगुणो फोसिदो । किं कारणं ? जेण पंचरज्जुवाहल्लं रज्जुपदरं वाउकाइयजीवावूरिदं बादरएइंदियजीवावूरिदअट्ठपुढवीओ च, तेसिं पुढवीणं हेट्ठा द्विदवीसावीसजोयणसहस्सबाहल्लं तिण्णि तिण्णि वादवलए लोगंतट्ठिदवाउकाइयखेत्तं च एगह कदे लोगस्त संखेज्जदिमागो होदि चि । एदेहि अदीदकाले वि एत्तियं चेव खेत्तं पोसिदं, विवक्खिदपदपरिणदाणमेदेसि सव्वद्धमण्णत्थच्छणाभावादो । वेउव्वियपदपरिणदेहि वट्टमाणकाले चदुण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, माणुसखेत्तादो अमुणिदविसेसो फोसिदो । तीदे काले तिण्डं लोगाणं संखेज्जदिभागो, दोलोगेहिंतो असंखेज्जगुणो फोसिदो। मारणंतिय-उववादपरिणदेहि तीद-वट्टमाणकालेसु
भाग स्पर्श किया है। इस विषयमें मनुष्यक्षेत्रका प्रमाण ज्ञात नहीं है। उन्हीं जीवोंने अतीतकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग और नरलोक तथा तिर्यग्लोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि, अतीतकाल में पांच राजु बाहल्यप्रमाण तिर्यप्रतरको विक्रिया करनेवाले वायुकायिक जीव निरन्तर स्पर्श करते हैं। स्वस्थान, वेदना
और कषायसमुद्धात, इन पदोंसे परिणत बादर एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रियपर्याप्त जीवोंने वर्तमानकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका संख्यातवां भाग और नरलोक तथा तिर्यग्लोक, इन दोनों लोकोसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है।
शंका-चादर एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रियपर्याप्त जीवोंका सामान्यलोक आदि तीन लोकोंके संख्यातवें भाग स्पर्शनक्षेत्र होनेका क्या कारण है ?
समाधान-इसका कारण यह है कि पांच राजु बाहल्यवाला राजुप्रतरप्रमाण क्षेत्र वायुकायिक जीवोंसे परिपूर्ण है और बादर एकेन्द्रिय जीवोंसे आठों पृथिवियां व्याप्त हैं। उन पृथिवियोंके नीचे स्थित बीस बीस हजार योजन बाहल्यवाले तीन दीन वातयलयोंको और लोकान्तमें स्थित वायुकायिक जीवोंके क्षेत्रको एकत्रित करनेपर सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका संख्यातवां भाग हो जाता है।
इन्हीं उक्त जीवोंने अतीतकाल में भी इतना ही क्षेत्र स्पर्श किया है, क्योंकि, विवक्षित पदपरिणत इन उक्त जीवोंके सभी कालों में अन्यत्र रहनेका अभाव है। वैक्रियिकसमुद्धातसे परिणत बादरएकेन्द्रिय और बादरएकेन्द्रियपर्याप्त जीवोंने वर्तमानकाल में सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मानुषक्षेत्रसे अज्ञातविशेष प्रमाणक्षेत्र स्पर्श किया है । अतीतकालमें उन्हीं जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका संख्यातवां भाग और मरलोक तथा तिर्थग्लोक, इन दोनों लोकोंसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत उक्त जीवें ने अतीत और वर्तमानकालमें
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