Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२५० छक्खंडागमे जीवहाणं
[१, १, ६७. तीदाणागदवट्टमाणकालेसु तिण्हं लोगाणं संखेज्जदिभागो दोलोगेहितो असंखेज्जगुणो फोसिदो । वेउवियपदस्स वट्टमाणकाले खेत्तभंगो। तीदे काले वेउवियपदस्स वाउकाइयवेउव्यियभंगो । मारणंतिय-उववादपरिणदेहि बादरवाउक्काइएहि सव्वलोगो पोसिदो। एवं बादरवाउक्काइयअपज्जत्ताणं । णवरि वेउव्वियपदं णत्थि । सुहुमतेउक्काइय सुहुमवाउक्काइया तेसिं पज्जत्त-अपज्जत्तएहि य सत्थाण-वेदण-कसाय-मारणंतिय-उववादपरिणदेहि तीदाणागदवट्ठमाणकालेसु सबलोगो पोसिदो।
बादरपुढविकाइय-बादरआउकाइय-बादरतेउकाइय-बादरवणफदि. काइयपत्तेयसरीरपज्जत्तएहि केवडियं खेत्तं पोसिदं, लोगस्स असंखे. ज्जदिभागो ॥ ६७ ॥
एदस्स सुत्तस्स अत्थो जधा खेत्ताणिओगद्दारे उत्तो तधा वत्तव्यो। सव्वलोगो वा ॥ ६८॥
एत्थ ताव 'वा' सद्दट्ठो बुच्चदे-बादरपुढविकाइयपज्जत्त-बादरआउकाइयपजत्तबादरणिगोदपदिहिदपज्जत्तएहि य सत्थाण-वेदण-कसायपरिणदेहि तिण्हं लोगाणमसंखे
वर्तमान, इन तीनों कालोंमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका संख्यातवां भाग और मनुष्यलोक तथा तिर्यग्लोक, इन दोनों लोकोंसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । वैक्रियिकसमुद्धातपदका स्पर्शनक्षेत्र वर्तमानकालमें क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। अतीतकालमें वैक्रियिकसमु. द्वातपदका स्पर्शनक्षेत्र वायुकायिक जीवोंके वैक्रियिकपदके स्पर्शनके समान है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत बादरवायुकायिक जीवोंने सर्वलोक स्पर्श किया है । इसी प्रकारसे बादरवायुकायिक अपर्याप्त जीवोंका स्पर्शन जानना चाहिए । विशेष बात यह है कि इनके वक्रियिकसमुद्धातपद नहीं होता है। स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषाय, मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत सूक्ष्म तेजस्कायिक, सूक्ष्म वायुकायिक और उनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त जीवोंने अतीत, अनागत और वर्तमान, इन तीनों कालों में सर्वलोक स्पर्श किया है।
बादर पृथिवीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर तेजस्कायिक और बादर वनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर पर्याप्त जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ६७॥
इस सूत्रका अर्थ जैसा क्षेत्रानुयोगद्वारमें कहा गया है, उसी प्रकारसे कहना चाहिए। उक्त जीवोंने अतीत और अनागतकालकी अपेक्षा सर्वलोक स्पर्श किया है॥६८॥
यहांपर 'वा' शब्दका अर्थ कहते हैं- स्वस्थानस्वस्थान, वेदना और कषायसमुद्धातपरिणत बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त और बादरनिगोदप्रतिष्ठित
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