Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२७० ]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ४, ९७.
जेण सव्वलोगो फोसिदो, तेण सुत्ते ओघमिदि वृत्तं । एत्थ विहारवदि सत्थाण-वेउब्वियमारणंतियपदाणि णत्थि ।
सासणसम्मादिडीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेजदि. भागो ॥ ९७ ॥
एदस्स सुत्तस्स वट्टमाणपरूवणा खेत्तभंगा । एक्कारह चोइसभागा देणा ॥ ९८ ॥
एत्थ उववादवदिरित्त सेसपदाणि णत्थि, कम्मइयकायजोगविवक्खादो । उववादे वट्टमाणा सासणा हेट्ठा पंच, उवरि छ रज्जूओ फुसति ति एक्कारह चोदसभागा फोसिदखेत्तं होदि ।
असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ९९ ॥
एदस्स परूवणा खेत्तभंगो, वट्टमाणकालपडिबद्धतादो | छ चोसभागा देणा ॥ १०० ॥
पद कहा है। यहां, अर्थात् कार्मणकाथयोगी मिथ्यादृष्टियोंके, विहारवत्स्वस्थान, वैक्रियिक और मारणान्तिकसमुद्वात, इतने पद नहीं होते हैं।
कार्मण काययोगी सासादनसम्यग्दृष्टियोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ।। ९७ ।
इस सूत्र की वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रके समान है ।
कार्मण काययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने तीनों कालोंकी अपेक्षा कुछ कम ग्यारह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ।। १८ ।।
siपर उपपादपदको छोड़कर शेष पद नहीं हैं, क्योंकि, कार्मणकाययोगकी विवक्षा की गई है । उपपादपद में वर्तमान सासादनसम्यग्दृष्टि जीव मेरुके मूलभागसे नीचे पांच राजु और ऊपर अच्युतकल्पतक छह राजु प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन करते हैं, इसलिए ग्यारह बटे चौदह (१४) भाग प्रमाण स्पर्श किया हुआ क्षेत्र हो जाता है ।
कार्मणका योगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ।। ९९ ॥
वर्तमान कालसे प्रति संबद्ध होनेसे इस सूत्र की स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणा के समान है । कार्मणकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने तीनों कालोंकी अपेक्षासे कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ।। १०० ।
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