Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२७४ ]
क्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ४, १०६.
रज्जू, देवेहिंतो आगच्छंतेहि छ रज्जू फोसिदा ति एक्कारह चोदसभागा फोसणखेत्तं होदि । सम्मामिच्छादिट्टि असंजदसम्मादिट्टीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ १०६ ॥
एदस्य सुत्तस्स परूवणा खेत्तभंगो, वट्टमाणकालविवक्खादो । अट्ट चोहसभागा वा देखणा फोसिदा ॥ १०७ ॥
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सत्थाणत्थेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो, तीदकालविवक्खादो । विहारवदि सत्थाण वेदणकसाय - देउच्चिय-मारणंतिय परिणदेहि अट्ठ चोहसभागा देणा फोसिदा । गवरि सम्मा मिच्छाइट्ठीणं मारणंतियं णत्थि । उववादपरिणदेहि छ चोदसभागा देणा फोसिदा । णवरि सम्मामिच्छादिट्ठीणं उववादो णत्थि । इत्थिवेदेसु असंजदसम्मादिट्ठीणं उववादो णत्थि । संजदासंजदेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागों ॥ १०८ ॥
अपक्षा छह राजु स्पर्श किये गये हैं । इस प्रकार ग्यारह बटे चौदह ( ११ ) भाग उपपादका स्पर्शनक्षेत्र है ।
वेद और पुरुषवेदी सम्यग्मिथ्यादृष्टि तथा असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है || १०६॥ वर्तमानकालकी विवक्षा होनेसे इस सूत्र की प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान जानना
चाहिए । उक्त जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ १०७ ॥
स्वस्थानस्थ स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी तृतीय व चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है; क्योंकि, यहां पर अतीतकालकी विवक्षा की गई है । विद्वारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिकपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह ( ४ ) भाग स्पर्श किये हैं । विशेष बात यह है कि सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके मारणान्तिकसमुद्धातपद नहीं होता है । उपपादपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह ( ) भाग स्पर्श किये हैं । विशेषता यह है कि सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके उपपादपद नहीं होता है | स्त्रीवेदी जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टियोंका उपपाद नहीं होता है ।
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वेद और पुरुषवेदी संयतासंयत जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १०८ ॥
१ असंयत सम्यग्दृष्टिभिः संयतासंयतेलों कस्यासंख्येयभागः षट् चतुर्दशभागा वा देशोनाः । स. सि, १, ८.
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