Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, ११०.] फोसणाणुगमे इत्थि-पुरिसवेदयफोसणपरूवर्ण
.[२७५ एदस्स सुत्तस्स परूवणा खेत्तभंगो, विवक्खिदवट्टमाणकालत्तादो । छ चोदसभागा देसूणा ॥ १०९॥
सत्थाणसत्थाण-वेदण-कसाय-बेउब्धियपरिणदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो, विवक्खिदातीदकालत्तादो। मारणंतियपरिणदेहि छ चोदसभागा देसूणा फोसिदा, अच्चुदकप्पादो उवरि तिरिक्खसंजदासंजदाणमुववादाभावा ।
पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियट्टिउवसामग-खवएहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ११० ॥
एदस्स सुत्तस्स वट्टमाणपरूवणा खेत्तभंगा। अदीदकाले एदेहि सत्थाण-विहारवेदण-कसाय-वेउधियपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, माणुसखेत्तस्स संखेज्जदिभागो फोसिदो। पमत्तसंजदे तेजाहारपदाणं वि एवं चेव वत्तव्यं । णवरि इस्थिवेदे तेजाहार
वर्तमानकालकी विवक्षा होनेसे इस सूत्रकी स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान जानना चाहिए।
स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी संयतासंयत जीवोंने अतीत और अनागतक लकी विवक्षासे कुछ कम छह बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥१.९॥
___ स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषाय और वैकियिकपदपरिणत स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी संयतासंयत जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है क्योंकि, यहांपर अतीतकालकी विवक्षा की गई है। मारणान्तिकपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह (1) भाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि, अच्युतकल्पसे ऊपर तिर्यंच संयतासंयत जीवोंका उपपाद नहीं होता है।
स्त्रीवेदी और पुरुषवेदियों में प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर अनिवृत्तिकरण उपशामक और क्षपक गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवी जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ ११०॥
इस सूत्रकी वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। अतीतकाल में स्वस्थानस्वस्थान. विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और क्रियिकसमुद्धातपरिणत इन्हीं उक्त जीवाने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, और मनुष्यक्षेत्रका संख्यातवां भाग स्पर्श किया है। प्रमत्तसंयत गुणस्थानमें तैजससमुद्धात और आहारकसमुद्धात, इन दोनों ही पदोंमें इसी प्रकारसे स्पर्शनक्षेत्र कहना चाहिए । विशेष बात यह है.कि-स्त्रीवेदमें
१ प्रमत्तायनिवृत्तिवावरान्तानां सामान्योक्तं स्पर्शनम् । स. सि. १, ८.
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