Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, १०५. ]
फोसणाणुगमे इत्थि - पुरिसवेदय फोसणपरूवणं
[ २७३
,
सत्थाणत्थेहि सासणसम्मादिट्ठीहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो, अदीदकालविवक्खादो | एत्थ वि पुव्वं व तिणि खेत्ताणि घेत्तूण तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो दरिसेदव्वो । एसो 'वा सद्दट्ठो । विहारवदिसत्थाण- वेदण-कसायपरिणदेहि अट्ठ चोहसभागा देसूणा फोसिदा, अट्ठरज्जुबाहल्लरज्जुपदरब्भंतरे देवित्थि - पुरिससासणाणं गमणागमणं पडि पडिसेहाभावा । मारणंतियपरिणदेहि णव चोदसभागा देसूणा फोसिदा । हेट्ठा पंच रज्जू फोसणं किण्ण लब्भदे ! ण, रइएहिंतो इत्थि - पुरिसवेदे सासणाणं तिरिक्ख-मणुस्सेसु मारणंतियमेल्लमाणाणमभावादो, तिरिरक्खित्थि - पुरिसवेदसासणाणं णिरयगदिं मारणंतियं मेल्लमाणाणमभावादो च । उववादपरिणदेहि एक्कारह चोहसभागा देखणा फोसिदा । सुत्ते उववादफोसणं किण्ण वृत्तं ? ण, फोसणसुत्ते उववादविवक्खाभावा । णिरयादो आगच्छंतेहि पंच
उक्त दोनों वेदवाले स्वस्थानस्थ सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है; क्योंकि, यहांपर अतीतकालकी विवक्षा है। यहांपर भी पूर्वके समान तीनों क्षेत्रोंको ग्रहण करके तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग दर्शाना चाहिए । यही सूत्रपठित 'वा' शब्दका अर्थ है । विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धातपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह (१४) भाग स्पर्श किये हैं; क्योंकि, आड राजु बाहल्वाले राजुप्रतर के भीतर देव स्त्री और पुरुषवेदी सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंके गमनागमनके प्रति प्रतिषेधका अभाव है । मारणान्तिकसमुद्धात परिणत उक्त जीवोंने कुछ कम नौ बटे चौदह ( ) भाग स्पर्श किये हैं ।
शंका - मेरुतलसे नीचे पांच राजुप्रमाण स्पर्शनक्षेत्र क्यों नहीं पाया जाता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, नारकियोंसे स्त्री और पुरुषवेदी तिर्यचों और मनुष्यों में मारणान्तिकसमुद्धात करनेवाले सासादन सम्यग्दृष्टि जीवोंका अभाव है; तथा नरकगतिके प्रति मारणान्तिकसमुद्धात करनेवाले स्त्री और पुरुषवेदी तिर्यच सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका भी अभाव है ।
उपपादपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम ग्यारह बटे चौदह (१) भाग स्पर्श
किये हैं ।
शंका – सूत्र में उपपादपदसम्बन्धी स्पर्शनका प्रमाण क्यों नहीं कहा ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, स्पर्शनानुगम सम्बन्धी सूत्रमें उपपादपदकी विवक्षाका
अभाव है।
नरकगति से आनेवाले जीवोंकी अपेक्षा पांच राजु, और देवगतिसे आनेवाले जीवोंकी
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