Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२७२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, १०३. अट्टचोदसभागा देसूणा, सव्वलोगो वा ॥ १०३ ॥ --
सत्थाणत्थेहि मिच्छादिट्ठीहि अदीदकाले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। एत्थ वाणवेंतर-जोदिसियावासे सखेजजोयणबाहल्लं रज्जुपदरं च घेत्तूण तिरियलोगस्स संखेजदिभागो साहेदव्वो। विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-वेउव्वियपरिणदेहि अट्ठ चोदसभागा फोसिदा, अट्ठरज्जु. बाहल्ल-रज्जुपदरपरिभमणसत्तिजुत्तदेवित्थि-पुरिसवेदमिच्छादिट्ठीणमुवलंभादो। मारणंतियउववाद-परिणदेहि सव्वलोगो फोसिदो, दुपदपरिणदमिच्छादिट्ठीणमगम्मपदेसाभावादो।
- सासणसम्मादिहीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेजदिभागों ॥ १०४॥
एदस्स सुत्तस्स परूवणा खेत्तभंगो, वट्टमाणकालपडिबद्धत्तादो। अट्ठ णव चोदसभागा देसूणा ॥ १०५॥
स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह भाग तथा सर्वलोक स्पर्श किया है ॥ १०३ ॥
स्वस्थानस्थ स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंने अतीतकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यहां पर वानव्यन्तर और ज्योतिष्क देवोंके आवासोंको, तथा संख्यात योजन प्रमाण बाहल्यवाले राजुप्रतरको ग्रहण करके तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग साधलेना चाहिए। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धातपरिणत उक्त जीवोंने आठ बटे चौदह (४) भाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि, आठ राजु बाहल्यवाले राजुप्रतरप्रमाण क्षेत्रमें परिभ्रमणकी शक्तिसे युक्त देव स्त्री और पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीव पाये जाते हैं। मारणोन्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत उक्त जीवोंने सर्वलोक स्पर्श किया है, क्योंकि, मारणान्तिक और उपपाद, इन दोनों पदोंसे परिणत स्त्री और पुरुषवेदी मिथ्यादृष्टि जीवोंके अयम्यप्रदेशका अभाव है।
स्त्री और पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है ॥ १०४॥
धर्तमानकालसे सम्बद्ध होने के कारण इस सूत्रकी प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है।
स्त्री और पुरुषवेदी सासादनसम्यग्दृष्टियोंने अतीत और अनागत कालकी अपेक्षा कुछ कम आठ बटे चौदह तथा नौ बटे चौदह भाग स्पर्श किये हैं ॥ १०५॥
१सासादनसम्यग्दृष्टिमिर्लोकस्यासंख्येयभागः अष्टौ नव चतुर्दशभागा वा देशोनाः। स. सि. १,८.
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