Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२४८]
छक्खंडागमे जीवद्वाणं
[ १, ४, ६६.
उच्चदे - एदे पुढवीओ चेव अस्सिदूग अच्छंति । सञ्चपुढवीओ च सत्तरज्जुआयदाओ, पढमपुढची सादिरेग एगरज्जुरुंदा | १|| विदिय पुढवी छहि सत्तभागेहि समहिय एगरज्जुरुंद | १|| दिढवी पंच सत्तभागाहिय वे रज्जुरुंदा | २ | | चउत्थपुढवी चत्तारि - सत्त भागाहिय- तिण्णिरज्जुरुंदा ३ | | पंचमपुढवी तिष्णिसत्त भागाहिय चत्तारिरज्जुरुंदा ४ । छट्ठपुढवी वे सत्तभागाहिय पंच रज्जुरुंदा | ५|| सत्तमपुढवी एग-सत्त भागाहियछरज्जुदा | ६ | | अट्ठमपुढवी सादिरेयएगरज्जुरुंदा । पढमपुढविवाहलं असीदिसहस्साहियजोयणलक्खमाणं होदि १८०००० । विदियपुढवी वत्तीसजोयणसहस्सचा हल्ला ३२००० | तदियपुढवी अट्ठावीसजोयणसहस्सचाहल्ला २८००० । चउत्थपुढवी चउवीसजोयणसहस्सबाहल्ला २४००० | पंचमढवी वीसजोयणसहस्सबाहल्ला २०००० । छपुढवी सोलसजोयणसहस्सबाहल्ला १६००० | सत्तमपुढवी अट्ठजोयणसहस्सबाहल्ला ८००० | अट्टमढवी अट्ठजोयणबाहल्ला ८ । एदाओ अट्ठपुढवीओ पदरागारेण ठइदे तिरियलोग बाहल्लादो संखेजगुणबाहल्लं जगपदरं होदि । मारणंतिय उववादपरिणदेहि
समाधान - ये बादर पृथिवीकायिक आदि जीव पृथिवियों का ही आश्रय लेकरके रहते हैं । और सभी पृथिवियां सात राजुप्रमाण आयत हैं । प्रथम पृथिवी साधिक एक राजु चौड़ी है (१) । द्वितीय पृथिवी छड़ बटे सात भागों से अधिक एक राजु चौड़ी है ( १ ) । तृतीय पृथिवी पांच बटे सात भागसे अधिक दो राजु चौड़ी है (२३) । चौथी पृथिवी चार बटे सात भागों से अधिक तीन राजु चौड़ी है ( ३ ) । पांचवी पृथिवी तीन बटे सात भागों से अधिक चार राजु चौड़ी है (४) । छठी पृथिवी दो बटे सात भागोंले अधिक पांच राजु चौड़ी है ( ५3 ) । सातवीं पृथिवी एक बटे सात भागसे अधिक छह राजु चौड़ी है ( ६ )। आठवीं पृथिवी कुछ अधिक एक राजु चौड़ी है (१) । प्रथम पृथिवीकी मोटाई एक लाख अस्सी हजार योजन प्रमाण है । १८०००० ) । द्वितीय पृथिवी बत्तीस हजार योजन मोटी है (३२०००) । तृतीय पृथिवी अट्ठाईस हजार योजन मोटी है (२८०००) । चौथी पृथिवी चौबीस - हजार योजन मोटी है (२४००० ) । पांचवीं पृथिवी बीस हजार योजन मोटी है (२००००)। छठीं पृथिवी सोलह हजार योजन मोटी है ( १६००० ) । सातवीं पृथिवी आठ हजार योजन मोटी है ( ८००० ) । आठवीं पृथिवी आठ योजन मोटी है ( ८ ) । इन आठों पृथिवियोंको प्रतराकार से स्थापित करनेएर तिर्यग्लोकके बाहल्यसे संख्यातगुणा बाहल्यप्रमाण जगप्रतर होता है (देखो पृ. ९१ ) । इसलिए उक्त जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र तिर्यग्लोक से संख्यातगुणा है, यह जाना जाता है ।
मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदपरिणत उक्त जीवोंने भूत, भविष्य और वर्तमान
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