Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १, ८९. एदेसि दोण्हं पि पदाणमभावो, तधावि पदसंखाविवक्खाभावा विज्जमाणपदाणं फोसणस्स ओघपदफोसणेण तुल्लत्तमत्थि त्ति ओघत्तं ण विरुज्झदे ।। ___ सासणसम्माइटि-असंजदसम्माइट्ठि-सजोगिकेवलीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं, लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ८९ ।।
एदेसिं तिण्हं गुणट्ठाणाणं वट्टमाणपरूवणा खेत्तभंगो। सत्थाणसत्थाण-वेदण कसायउववादपरिणदओरालियोमस्ससासणसम्मादिट्ठीहि अदीदकाले तिण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो। कधं तिरियलोगस्त सखेज्जदिमागत्तं ? देव-णेरइयमणुस्स-तिरिक्खसासणसम्मादिट्ठीहि तिरिक्खमणुस्सेसुप्पन्जिय सरीरं घेत्तूण ओरालियमिस्सकायजोगेण सह सासणगुणमुव्यहंतेहि अदीदकाले संखेजंगुलपाहल्लरज्जुपदरं मज्झिल्लसमुद्दवज्ज सव्वं जेण फुसिजदि तेण तिरियलोगस्स सखेज्जदिभागो त्ति वयणं जुञ्जदे । एत्थ विहार-चेउब्धिय-मारणंतिय-पदाणि णत्थि, एदेसिमोरालिय. मिस्सकायजोगेण सहअवट्ठाणविरोहा । उबवादो पुण अत्थि, सासणगुणेण सह अक्कमेण
खात, इन दो पदोंका अभाव भले ही रहा आवे, तथापि पदोंकी संख्याकी विवक्षा न करनेसे उनमें विद्यमान पदोंके स्पर्शनकी ओघपदके स्पर्शनके साथ तुल्यता है ही, इसलिए ओघपना विरोधको प्राप्त नहीं होता है।
__ औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि, असंयतसम्यग्दृष्टि और सयोगिकेवली जीवोंने कितना क्षेत्र स्पर्श किया है ? लोकका असंख्यातवां भाग स्पर्श किया है॥ ८९॥
इन तीनों ही गुणस्थानोंके स्पर्शनकी वर्तमानकालिक प्ररूपणा क्षेत्रके समान है। स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषायसमुद्धात और उपपादपदपरिणत औदारिकमिश्रकाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने अतीतकालमें सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है।
शंका-तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग कैसे कहा ?
समाधान-चूंकि देव, नारकी, मनुष्य और तिर्यंच सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने (यथासंभव ) तिर्यंच और मनुष्योंमें उत्पन्न होकर शरीरको ग्रहण करके औदारिकमिश्रकाययोगके साथ सासादनगुणस्थानको धारण करते हुए अतीतकालमें बीचके समुद्र को छोड़कर संख्यात अंगुल बाहल्यवाले सम्पूर्ण राजुप्रतररूप क्षेत्रका स्पर्श किया है, इसलिए 'तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग' यह वचन युक्तियुक्त है।
यहां पर विहारवत्स्वस्थान, वैक्रियिक और मारणान्तिक पद नहीं होते हैं, क्योंकि, इन पदोंका औदारिकमिश्रकाययोगके साथ अवस्थानका विरोध है । किन्तु उपपादपद होता है, क्योंकि, सासादनगुणस्थानके साथ अक्रमसे (युगपत्) उपात्त भवशरीरके प्रथम समयमें
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