Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, ८९. ]
फोसणाणुगमे कायजोगि फोसणपरूवणं
[ २६५
उवात्तमवसरीरपढमसमए उववादोवलंभा । मिच्छादिट्ठीणं पुण मारणंतिय-उववादपदाणि लब्भंति, अणंतो ओरालिय मिस्से इंदियअपज्जत्तरासी सट्टाणे परट्ठाणे च वकमणोवकमणं करेमाणो लब्भदिति । सत्थाणसत्थाण- वेदण-कसाय-उववादपरिणदेहि असंजदसम्मादिट्ठीहि ओरालि मिस्स काय जोगीहि तीदे काले तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । कथं तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागत्तं ? ण, पुव्त्रं तिरिक्ख- मणुस्सेसु आउअं बंधिय पच्छा सम्मत्तं घेत्तूण दंसणमोहणीयं खविय बाउवसेण भोगभूमिसंठाणअसंखेज्जदीवेसु उप्पण्णेहि भवसरीरग्गहणपढमसमए वट्टमाहि ओरालिय मिस्सकायजोगअसंजदसम्मादिट्ठीहि अदीदकाले पोसिदतिरिय लोगस्स संखेज्जदिभागवलंभा | कवाडगदेहि सजोगिकेवलीहि ओरालियमिस्सकायजोगे वट्टमाणेहि तिन्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो; अदीदेण तिरियलोगादो संखेज्जगुणो पोसिदो । एत्थ कवाडखेत्तादो जगपदरुप्पा, विधाणं जाणिय वत्तव्वं ।
उपपाद पाया जाता है। मिथ्यादृष्टि जीवों के भी मारणान्तिक और उपपादपद पाये जाते हैं, क्योंकि, अनन्तसंख्यक औदारिकमिश्रकाययोगी एकेन्द्रिय अपर्याप्त राशि, स्वस्थान और परस्थान में अपक्रमण और उपक्रमण करती हुई, अर्थात् जाती आती, पाई जाती है । स्वस्थानस्वस्थान, वेदना, कषायसमुद्धात और उपपादपदपरिणत औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंने अतीतकाल में सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है ।
शंका - औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टियों के उपपादक्षेत्रको तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग कैसे कहा ?
समाधान - नहीं, क्योंकि, पूर्वमें तिर्यच और मनुष्यों में आयुको बांधकर पीछे सम्यक्तको ग्रहण कर, और दर्शनमोहनीयका क्षय करके बांधी हुई आयुके वशसे भोगभूमिकी रचनावाले असंख्यात द्वीपोंमें उत्पन्न हुए, तथा, भव-शरीर के ग्रहण करनेके प्रथम समय में वर्तमान, ऐसे औदारिकमिश्रकाययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके द्वारा अतीतकालमें स्पर्श किया गया क्षेत्र तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग पाया जाता है ।
कपाटसमुद्धातको प्राप्त, औदारिकमिश्रकाययोगमें वर्तमान सयोगिकेवलियोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । अतीतकालकी अपेक्षासे तिर्यग्लोकसे संख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यहां पर कपाटसमुद्घातगत क्षेत्रकी अपेक्षासे स्पर्शनक्षेत्रसम्बन्धी जगप्रतरके उत्पादनका विधान जान करके कहना चाहिए । ( इसके लिए देखो क्षेत्रप्ररूपणा पृ. ४९ आदि ) ।
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