Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
१, ४, ९३.] फोसणाणुगमे कायजोगिफोसणपरूवणं
[२६७ सासणसम्मादिट्ठी ओघं ॥ ९२॥
एदस्स वट्टमाणपरूवणा खेत्तभंगो। सत्थाणसत्थाणपरिणदवेउव्वियकायजोगिसासणसम्मादिट्ठीहि तिण्डं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो । एत्थ तिरियलोयस्स संखेज्जदिभागपरूवणं पुव्वं व वत्तव्यं । विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय-बेउव्वियपरिणदेहि अट्ठ चोद्दसभागा फोसिदा । उववादो णत्थि । मारणंतियपरिणदेहि बारह चोदसभागा फोसिदा । तेणोघमिदि जुञ्जदे ।
सम्मामिच्छादिट्ठी असंजदसम्मादिट्ठी ओघं ॥ ९३ ॥
जेणेदेसिं वद्दमाणपरूवणा खेत्तोघपरूवणाए तुल्ला, तेणोघं होदि । अदीदपरूवणा वि फोसणोघेण तुल्ला । तं जहा- सत्थाणसत्थाणपरिणदेहि तिहं लोगाणमसंखेज्जदिमागो, तिरियलोगस्त संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो । विहारवदिसत्थाणवेदण-कसाय-वेउब्धिय-मारणंतियपरिणदेहि अट्ठ चोद्दसभागा देसूणा फोसिदा । असंजद
वैक्रियिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र ओघस्पर्शनके समान है ॥ ९२॥
इस सूत्रकी वर्तमान स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है । स्वस्थानस्वस्थान. पदपरिणत वैक्रियिककाययोगी सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। यहां पर तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागकी प्ररूपणा पूर्वके समान ही करना चाहिए। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धात, इन पदोंसे परिणत वैक्रियिककाययोगी जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह (४) भाग स्पर्श किये हैं। इनके उपपादपद नहीं होता है । मारणान्तिकसमुद्धातपदसे परिणत उक्त जीवोंने बारह बटे चौदह (१३) भाग स्पर्श किये हैं। इसलिए सूत्रमें दिया गया 'ओघ ' यह पद युक्तिसंगत है।
वैक्रियिककाययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका स्पर्शन ओघके समान है ॥ ९३ ॥
चूंकि इन दोनों गुणस्थानवी जीवोंकी वर्तमानकालिक स्पर्शनप्ररूपणा क्षेत्रसम्बन्धी ओघप्ररूपणाके तुल्य है, इसलिए उनकी स्पर्शनप्ररूपणा ओघके तुल्य होती है। अतीत. कालिक स्पर्शनप्ररूपणा भी ओघस्पर्शनप्ररूपणाके समान है। वह इस प्रकारसे है-स्वस्थानस्वस्थानपदपरिणत बैक्रियिककाययोगी सम्यग्दृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि जीवाने सामान्यलोक
लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय, वैक्रियिक और मारणान्तिकपदपरिणत उक्त जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह (४) भाग स्पर्श किये हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org