Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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१, ४, ५..] फोसणाणुगमे देवफासणपरूवर्ण
[ २३५ विमाणाणि असंखेज्जजोयणवित्थडाणि ति घेप्पंति, तो वि सम्वविमाणखेत्तफलसमासो तिरियलोगस्स असंखेजदिभागो चेव होदि । तं जहा- एगविमाणायामो असंखेजजोयणमेत्तो त्ति का असंखेज्जजोयणविक्खंभेणायाम गुणिय विमाणुस्सेहसंखेज्जंगुलेहि गुणिदे तिरियलोगस्स असंखेञ्जदिभागो होदि, एक्केक्कविमाणायाम-विक्खंभाणं सेढिपढमवग्गमूलादो असंखेज्जगुणपमाणत्तादो। तं सोधम्मीसाणविमाणसंखाए गुणिदे वि तिरियलोगस्स असंखेज्जदिभागो होदि त्ति । एत्थ सबकप्पाणं कमेण विमाणसंखापरूवयगाहाओ
वत्तीसं सोहम्मे अट्ठावीसं तहेव ईसाणे ।। वारह सगक्कुमारे अडेव य हेति माहिंदे ॥ १० ॥ बम्हे कप्पे बम्होत्तरे य चत्तारि सयसहस्साई । छसु कप्पेसु य एयं चउरासीदी सयसहस्सा ॥ ११ ॥ पण्णासं तु सहस्सा लंतय-काविट्ठएसु कप्पेसु । मुक्क-महासुक्केसु य चत्तालीसं सहस्साई ॥ १२ ॥
प्रकीर्णकविमान मिश्र अर्थात् संख्यात और असंख्यात योजन विस्तारवाले होते हैं । यहांपर यदि सभी विमान असंख्यात योजन विस्तारवाले हैं, ऐसा समझकर ग्रहण करते हैं तो भी सभी विमानोंके क्षेत्रफलका जोड़ तिर्यग्लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण ही होता है। वह इस प्रकारसे है- एक विमानका आयाम असंख्यात योजनप्रमाण होता है। इसलिए असंख्यात योजन विष्कम्भले आयामको गुणा करके विमानके उत्सेधसम्बन्धी संख्यात अंगुलोंसे गुणा करनेपर तिर्यग्लोकका असंख्यातवां भाग ही होता है, क्योंकि, एक एक विमानका आयाम और विष्कम्भ जगश्रेणीके प्रथम वर्गमूलसे असंख्यातगुणित (हीन) प्रमाण होता है। उसे सौधर्म ईशामकरुपकी विमानसंख्यासे गुणा करनेपर भी तिर्यग्लोकका असंख्यातवां भाग ही रहता है। यहांपर सभी कल्पोंके विमानोंकी क्रमसे संख्याओंकी प्ररूपणा करनेवाली गाथाएं इस प्रकार हैं
सौधर्मकल्पमें बत्तीस लाख विमान है, उसी प्रकारसे ईशानकल्पमें अट्ठाईस लाख, सनत्कुमारकल्पमें बारह लाख तथा माहेन्द्रकल्पमें आठ लाख विमान होते हैं । १०
ब्रह्म और ब्रह्मोत्तर कल्पमें दोनों कल्पोंके मिलाकर चार लाख विमान हैं। इस प्रकार इन ऊपर बताए गये छह कल्पों में विमानों की संख्या चौरासी लाल होती है ॥ ११॥
जैसे- ३२००००० + २८००००० + १२००००० + ८००००० + ४००००० = ४४००००० सौधर्मादि छह स्वर्गोंकी विमानसंख्या.
लान्तत्र और कापि इन दोनों कल्पों में पचास हजार विमान होते हैं। शुक्र और महाशुफ कल्पमें चालीस हजार विमान हैं ॥ १२ ॥
१ . असंखेज्जगुणहीणपमाणतादो' इति पाठः प्रतिभाति ।
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