Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२३४ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ४, ५०. मिच्छादिद्वि-असंजदसम्मादिट्ठीहि अद्भुट्ठा चोद्दसभागा देसूणा सगपञ्चएण; परपच्चएण अट्ठ चौर्देसभागा देसूणा पोसिदा । णवरि सम्मामिच्छादिट्ठीणं मारणंतियपदं गस्थि ।
सोधम्मीसाणकप्पवासियदेवेसु मिच्छादिटिप्पहुडि जाव असंजदसम्मादिट्टि त्ति देवोघं ॥ ५० ॥
सत्थाणसत्थाण-विहारवदिसत्थाण-वेदण-कसाय वेउव्यियपदपरिणदेहि मिच्छादिट्ठीहि वट्टमाणकाले चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइजादो असंखेजगुणो पोसिदो। मारणंतिय-उववादपरिणदेहि तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, णर-तिरियलोगेहितो असंखेज्जगुणो पोसिदो । सेसगुणट्ठाणजीवहि अप्पप्पणो पदेसु वट्टमाणेहि चदुण्डं लोगाणमसंखेअदिभामो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । तीदे काले सोधम्मीसाणकप्पवासियमिच्छादिहि-सासणसम्मादिहीहि सत्थाणसत्थाणपदपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । तं जहा- सव्वे इंदया संखेजजोयणवित्थडा, सेढीबद्धा असंखेज्जजोयणवित्थडा, पइण्णयवा मिस्सा। एत्थ जदि वि सव्व
न्तिकसमुद्धात, इन पदोंसे परिणत सम्यग्मिथ्यादृष्टि और असंयतसम्यग्दृष्टि भवनत्रिक देवोंने स्वप्रत्ययसे कुछ कम साढ़े तीन बटे चौदह (२४) भाग स्पर्श किये हैं; तथा परप्रत्ययसे कुछ कम आठ बटे चौदह (1) भाग स्पर्श किये हैं । विशेष बात यह है कि सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंके मारणान्तिकपद नहीं होता है।
सौधर्म और ईशान कल्पवासी देवोंमें मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती देवोंका स्पर्शनक्षेत्र देवोंके ओघस्पर्शनके समान है ॥ ५॥
स्वस्थानस्वस्थान, विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकपदपरिणत मिथ्यादृष्टि देवोंने वर्तमानकाल में सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। मारणान्तिकसमुद्धात और उपपादपदसे परिणत सौधर्म-ऐशान देवोंने सामान्यलोक आदि तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तथा नरलोक और तिर्यग्लोक, इन दोनों लोकोंसे असंख्यातगुणा क्षेत्र सर्श किया है। स्वस्थानस्वस्थान आदि अपने अपने पदोंमें वर्तमान सालादनादि शेष गुणस्थानवर्ती देवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और अढ़ाईद्वापसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। अतीतकालमें सौधर्म और ईशान कल्पवासी स्वस्थानस्वस्थानपदपारणत मिथ्याष्टि भौर सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग और मढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है। वह इस प्रकार है-सभी इन्द्रकविमान संख्यात योजन विस्तारवाले होते हैं, श्रेणीबद्धविमान असंख्यात योजन विस्तृत और
१इंदयसेटीबद्धप्पण्णयाणं कमेण वित्थारा। संखेज्जमसंखेज्जं उभयं च य जोयणाण हवे। त्रि.सा.१६८,
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