Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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छक्खंडागमे जीवद्वाणे
छच्चेव सहस्साइं सयारकप्पे तहा सहस्सारे । सत्तेव विमाणसया आरणकप्पच्चु चेय ॥ १३ ॥ एक्कास तिट्ठमेसु तिसु मज्झमेसु सत्तहियं । एक्काण उदिविमाणातिसु गेवज्जेसुत्ररिमेसु ॥ १४ ॥ गेवज्जावरिमया णव चेव अणुद्दिसा विमाणा ते । तह य अणुत्तरणमा पंचेव हवंति संखाए ॥ १५ ॥
विहार- वेदण-कसाय - वेउब्वियपदेहि अट्ठ चोइसभागा देणा पोसिदा । मारणंतियपरिणदेहि मिच्छादिट्ठि-सासणेहि णव चोहसभागा पोसिदा । उववादपरिणदेहि दिवडचोदस भागा पोसिदा । सोधम्मकप्पो धरणीतलादो दिवडुरज्जुमोस्सरिय विदोत्ति सम्मामिच्छादिट्ठीहि सत्थाणसत्थाणपरिणदेहि चदुण्हं लोगाणमसंखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो पोसिदो । विहारवदिसत्थाण- वेदण-कसाय- वेउव्वियपदपरिणदेहि अट्ठ चोदसभागा देणा पोसिदा । एवं असंजदसम्मादिट्ठीणं पि । णवरि मारणंतिएण अड्ड चोद्दसभागा, उववादेण दिवड - चोइसभागा देखणा पोसिदा । जेणेवं देवोघादो सोधम्मकप्पे ण
[ १, ४, ५०.
शतार और सहस्रार कल्पमें छह हजार विमान होते हैं। आनत, प्राणत, आरण और अच्युत, इन चार कल्पों में मिलाकर सातसौ विमान होते हैं ॥ १३ ॥
अधस्तन तीन प्रैवेयकों में एक सौ ग्यारह विमान, मध्यम तीन ग्रैवेयकोंमें एक सौ सात विमान और उपरिम तीन ग्रैवेयकोंमें इक्यानवें विमान होते हैं ॥ १४ ॥
नव ग्रैवेयकोंके ऊपर अनुदिश संज्ञावाले नौ विमान होते हैं। उनके ऊपर अनुतर संज्ञाबाले पांच विमान होते हैं ॥ १५ ॥
विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धात इन पदों को प्राप्त सौधर्मईशान कल्पके मिथ्यादृष्टि और सासादनगुणस्थानवर्ती देवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह (४) भाग स्पर्श किये हैं । मारणान्तिक पदले परिणत उक्त मिध्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंने नौ वटे चौदह (१४) भाग स्पर्श किये हैं । उपपादपदपरिणत उन्हीं जीवोंने डेढ़ बटे चौदह ( ) भाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि, सौधर्मकल्प धरणतिलसे डेढ़ राजु ऊपर जाकर स्थित है । स्वस्थान स्वस्थानपदपरिणत सम्यग्मिथ्यादृष्टि देवोंने सामान्यलोक आदि चार लोकोंका असंख्यातवां भाग, और अढाईद्वपिसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पर्श किया है । विहारवत्स्वस्थान, वेदना, कषाय और वैक्रियिकसमुद्धात, इन पदोंसे परिणत उक्त देवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह (१४) भाग स्पर्श किये हैं ।
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इसी प्रकार से असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंका भी स्पर्शनक्षेत्र जानना चाहिए । विशेष बात यह है कि असंयतसम्यग्दृष्टि देवोंने मारणान्तिकसमुद्धातकी अपेक्षा कुछ कम आठ () भाग और उपपादकी अपेक्षा कुछ कम डेढ़ बढे चौदह ( ) भाग स्पर्श
किये हैं ।
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