Book Title: Shatkhandagama Pustak 04
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
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२२६] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, ४, ४३. मिच्छादिद्वि-सासणसम्मादिट्ठीहि पंच चोदसभागा देसूणा पोसिदा, सहस्सारकप्पादो उवरिमेदेसिमुववादाभावा । छक्कापक्कमणियमे संते पंचचोद्दसभागफोसणं ण जुजदि त्ति णासंकणिज, चदुण्डं दिसाणं हेढुवरिमदिसाणं च गच्छंतेहि तदा मारणं पडि विरोहाभावादो।
का दिसा माम ? सगट्ठाणादो कंडुज्जुवा दिसा णाम । ताओ छच्चेव, अण्णेसिमसंभवादो । का विदिसा णाम ? सगट्ठाणादो कण्णायारेण द्विदखेत्तं विदिसा। जेण सव्वे जीवा कण्णायारेण ण जांति तेण छक्कावक्कमणियमो जुञ्जदे । ण च एगदंडेणेव उप्पत्तिट्ठाणेण उवरि सरिसा होति त्ति णियमो, एगंगुलादिवियप्पेहि तिरिक्खेण आयदं पढमदंडं काऊण तिरिक्ख-मणुसाणं विदियदंडेण सगुप्पत्तिट्ठाणपावणे विरोहाभावादो। भवणवासिएसु उप्पज्जमाणतिरिक्खुववादखेत्ते गहिदे पंच रज्जू सादिरेया किण्ण होति त्ति उत्ते ण होति,
किये हैं । उपपादपदगत मिथ्यादृष्टि और सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंने कुछ कम पांच बटे चौदह (५) भाग स्पर्श किये हैं, क्योंकि, सहस्रारकल्पसे ऊपर इन दोनों गुणस्थानवी जीवोंका उपपाद नहीं होता है।
शंका-छहों दिशाओं में जाने आनेका नियम होनेपर सासादनगुणस्थानवर्ती देवोंका स्पर्शनक्षेत्र पांच बटे चौदह भागप्रमाण नहीं बनता है ?
समाधान-ऐसी आशंका नहीं करना चाहिए, क्योंकि, चारों दिशाओंको और ऊपर तथा नीचेकी दिशाओंको गमन करनेवाले जीवोंके मारणान्तिकसमुद्धातके प्रति कोई विरोध नहीं है।
शंका-दिशा किसे कहते हैं ? समाधान- अपने स्थानसे बाणकी तरह सीधे क्षेत्रको दिशा कहते हैं। वे दिशाएं छह ही होती है, क्योंकि, अन्य दिशाओंका होना असंभव है। शंका-विदिशा किसे कहते हैं ? समाधान-अपने स्थानसे कर्णरेखाके आकारसे स्थित क्षेत्रको विदिशा कहते हैं।
चूंकि मारणान्तिकसमुद्धात और उपपाद पदगत सभी जीव कर्णरेखाके आकारसे अर्थात् तिरछे मार्गसे नहीं जाते हैं, इसलिए छह दिशाओंके अपक्रम अर्थात् गमनागमनका नियम बन जाता है। तथा, एक दंडके द्वारा ही सब जीव ऊपर उत्पत्तिस्थानकी अपेक्षा समतलस्थ हो जाते हैं, ऐसा नियम भी नहीं है, क्योंकि, एक अंगुल आदिके विकल्पसे तिरछे रूपसे आयत प्रथम दंडको करके तिर्यंच और मनुष्योंका द्वितीय दंडके द्वारा अपने उत्पत्तिस्थानको पाने में कोई विरोध नहीं है।
शंका-भवनवासियोंमें उत्पन्न होने वाले तिर्यंचोंके उपपादक्षेत्रको ग्रहण करने पर साधिक पांच राजु स्पर्शनक्षेत्र क्यों नहीं होता है ?
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